फकीर का दान

एक फकीर ने एक दफा कुछ लोगों को कहा कि मेरे पास कुछ रुपये हैं, यह गांव के सबसे दरिद्र आदमी को देना चाहता हूं। गांव के दस दरिद्र इकट्ठे हो गये, उन्होंने कहा, रुपये हमें दे दो। वह फकीर बोला, दरिद्रतम आ जाये तो दूंगा।

भिखमंगे से भिखमंगे लोग आये, लेकिन फकीर यह कहता रहा कि उस दिन की प्रतीक्षा में हूं जिस दिन अंतिम दरिद्र आदमी आएगा। लोग थक भी गये, समझ में नहीं आता कि वह किस दरिद्र की तलाश में है।

फिर एक दिन राजा की सवारी निकली और फकीर ने वह रुपये राजा के पास फेंक दिये। राजा हाथी पर बैठा था। राजा को पता था फकीर के वचन का कि वह अपने रुपये दरिद्रतम आदमी को देगा। राजा ने सवारी रोकी और बोला, यह क्या पागलपन करते हो?

कहते थे दरिद्रतम को दोगे और मुझे दे रहे हो? उस फकीर ने कहा, मेरी नजर में इस गांव में तुमसे ज्यादा दरिद्र और कोई नहीं है। राजा बोला, मैं समझा नहीं। फकीर ने कहा, जिसकी मांग सबसे बड़ी है, वह सबसे बड़ा भिखमंगा है।

जो सबसे ज्यादा मांग रहा है, फिर भी तृप्त नहीं होता और मांगता चला जाता है, वह उतना ही बड़ा भिखमंगा है। जिन्हें भिखमंगा नहीं होना, उन्हें मांग कम करनी होगा। जो जितनी मांग को क्षीण करता है, उतना मालिक होता जाता है।

जिसकी कोई मांग नहीं रह जाती, वह सम्राट हो जाता है। जिसकी जितनी ज्यादा मांगें होती चली जाती हैं, वह उतना ही क्षुद्र होता जाता है। अंत में मांगें ही मांगें रह जाती हैं। वह मांगने वाला ही रह जाता है। इस जमीन पर सबसे दरिद्र वे ही हैं, जिनके पास सबसे ज्यादा परिग्रह है।

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