जांच को आंच

दुनिया में कोविड महामारी की दस्तक को एक साल बीत चुका है और महामारी अर्थव्यवस्थाओं को तहस-नहस करके 23 लाख से अधिक लोगों को लील चुकी है, हम इसके मूल स्रोत तक नहीं पहुंच पाये हैं। चीन की तमाम ना-नुुुकुर के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों को कोरोना वायरस के स्रोत वुहान पहुंचने दिया गया।

फिर टीम को चौदह दिन के लिये क्वारंटीन किया गया। अब विशेषज्ञों की टीम के वुहान की चार सप्ताह की यात्रा के बाद इस बयान ने विश्व में प्रचलित इस धारणा को खारिज किया कि वायरस चीनी प्रयोगशाला से निकला था। टीम का कहना है कि संभावना है कि वायरस किसी जानवर से इनसान में फैला हो। हालांकि, यह निष्कर्ष साधारणत: गले नहीं उतरता है। कहीं न कहीं यह चीन के खिलाफ उपजे विश्वव्यापी विरोध को दबाने का प्रयास जान पड़ता है।

अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देश चीन पर समय रहते वायरस से जुड़ी जानकारी साझा न करने के आरोप लगाते रहे हैं। इसके विपरीत चीन अपनी धरती से वायरस फैलने के तथ्य को सिरे से खारिज करता रहा है। वह आरोप लगाता रहा है कि वायरस की उत्पत्ति अमेरिका व यूरोप में हुई होगी। उसकी मंशा पर इस बात से भी संदेह उत्पन्न होता है कि वह लंबे समय तक अपने यहां अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ दल को जांच करने में सहयोग देने को तैयार नहीं था।

कई महीनों की बातचीत के बाद चीन ने पिछले महीने डब्ल्यूएचओ की टीम को चीनी वैज्ञानिकों के साथ जांच के लिये वुहान आने की अनुमति दी जो कि उसकी मंशा पर सवालिया निशान लगाता है। सही तरह से जांच होने में हुई देरी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की शंका को बढ़ाया ही है। यही वजह है कि कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट की जांच करने की बात कही है। बहरहाल, कहना जल्दबाजी होगी कि चीन ने जांच दल को पूर्ण सहयोग दिया कि नहीं।

निस्संदेह, कोरोना के चीन से पूरी दुनिया में फैलने के मामले की जांच में पारदर्शिता अनिवार्य शर्त है क्योंकि मानवता ने संक्रमण के बारे में समय रहते सूचना न मिलने के कारण बड़ी कीमत चुकाई है। लाखों लोगों के मरने और करोड़ों लोगों के संक्रमित होने के अलावा पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हुई है। इस आर्थिक तबाही से उबरने में वर्षों लग जायेंगे।

ऐसे में पूरी दुनिया डब्ल्यूएचओ की ओर विश्वास से देख रही है कि संगठन इसके मुखिया की चीन के प्रति झुकाव के आरोपों से मुक्त होकर मानवता के विरुद्ध अपराध करने वालों की जवाबदेही तय करेगा। महामारी को लेकर चीन की भूमिका कई मायनों में संदिग्ध रही है। जब दुनिया कोरोना संकट से उबरने की जद्दोजहद में लगी थी तो चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को अंजाम दे रहा था।

अपने पड़ोसियों की संप्रभुता को रौंदकर अपने विस्तारवादी इरादों को विस्तार दे रहा था। इस दौरान उसने अपने कूटनीतिक अभियानों व चिकित्सा उपकरणों के कारोबार को खूब विस्तार दिया। जहां एक ओर दुनिया की तमाम छोटी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं कोरोना संकट से चरमरा गईं, वहीं चीन की ही अर्थव्यवस्था ने तेजी से विकास किया।

भारत ने पिछले दशकों की सबसे बड़ी आर्थिक गिरावट दर्ज की और अपने डेढ़ लाख से अधिक नागरिकों को खोया। वहीं चीन कोरोना से बचाव के उपकरणों और वैक्सीन कूटनीति में जुटा रहा। वहीं भारत को घटिया पीपीई किट और कोरोना की जांच करने वाली किटों की आपूर्ति भी चीनी मंसूबों को उजागर करती है। निस्संदेह विश्व बिरादरी चाहती है कि कोरोना संकट फैलाने में चीन की संदिग्ध भूमिका का सच जल्द से जल्द सामने आये।

मानव जाति को भविष्य के खतरों से बचाने के लिये इस मामले की तह तक पहुंचना जरूरी है ताकि मानव जाति की सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश की जा सके। साथ ही भविष्य में ऐसी जैविक तबाही को समय रहते फैलने से रोका जा सके। चीन से यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि सबसे पहले दिसंबर, 2019 में इस नयी बीमारी की सबसे पहले सूचना देने वाले डॉ. वेनलियांग को क्यों प्रताड़ित किया गया और उसकी मौत किन परिस्थितियों में हुई।

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