गणतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत

आज इस गणतंत्र दिवस पर आओ हम इसी प्रजातांत्रिक भावनाओं को और मजबूत कर इनमें नए आयाम स्थापित करने का प्रण लें ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हम पर भी उसी भांति गौरव करें जैसे हम आज अपने महान पूर्वजों पर करते हैं।

देश आज अपने गणतंत्र होने की वर्षगांठ मना रहा है। हमारे संविधान निर्माताओंए नीति निर्धारकोंए स्वतंत्रता सेनानियोंए क्रांतिकारियों ने देश के लिए जो सपने देखे उनकी पूर्ति करने का कार्य फलीभूत हुआ था आज के दिन। देश को कल्याणकारी लोकतांत्रिक व्यवस्था घोषित किया गया जिसका अर्थ है वह व्यवस्था जो जनता द्वारा चुनी गईए जनता द्वारा ही संचालित और जनसाधारण के कल्याण के लिए चलाई जाए।

स्वतंत्रता प्राप्ति के इन सात दशकों से अधिक के कार्यकाल के परिणामों पर दृष्टिपात किया जाए तो कमोबेश यह व्यवस्था न्यूनाधिक सफल होती दिखाई भी दे रही है। इस अवधि में आम आदमी का जीवन स्तर ऊंचा हुआ है सुख.सुविधा के साधन बढ़ेए शिक्षा व रोजगार के अवसर बढ़ेए साक्षरता दर में आशातीत सुधार हुआए जीवन दर में सुधार हुआए स्वास्थ्यांक सुधरा और कुल मिला कर आम देशवासियों का जीवन स्तर सुधरा है।

हमारे लिए यह भी गौरव की बात है कि कल्याणकारी राज्य की अवधारणा चाहे दुनिया के लिए नई हो परंतु इसकी जड़ें हमारी संस्कृति में पहले से ही विद्यमान रही हैं। अतीत का अध्ययन करें तो पाएंगे कि चाहे हमारी राज्य व्यवस्था राजतांत्रिक हो परंतु उसका उद्देश्य गणतांत्रिक और जनकल्याण ही रहा है। राजा को ईश्वर का रूप बताया गया परंतु उसका धर्म प्रजापालन ही माना गया है।

आदर्श गणतंत्र की जो व्याख्या जो देवर्षि नारद जी करते हैं वह किसी भी आधुनिक लोकतांत्रिक व गणतंत्र व्यवस्था के लिए आदर्श बन सकती है। धर्मराज युधिष्ठिर के सिंहासनरोहण के दौरान उन्होंने पांडव श्रेष्ठ से ऐसे प्रश्न पूछे जो आज आधुनिक युग में भी कल्याणकारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधार बने हुए हैं।

श्लोकपाल सभाख्यान पर्वश् में नारद जी द्वारा पूछे गए प्रश्नों में से इन कुछ प्रश्नों को पढ़ कर ही पाठक स्वतरू अनुमान लगा सकते हैं कि महर्षि ने युगों पहले ही कल्याणकारी गणतांत्रिक व्यवस्था को युधिष्ठिर के राज्य के रूप में मूर्त रूप प्रदान करने का प्रयास किया और युधिष्ठिर का राज्यकाल साक्षी भी है कि वह किसी भी रूप में रामराज्य से कम नहीं था। नारद जी के इन सिद्धांतों पर आएं तो हर राष्ट्र को सर्वप्रथम तो धनए अन्न व श्रम संपन्न होना चाहिए। इसके लिए राजा को सतत् प्रयास करने चाहिएं।

किसानों को ऋणए सिंचाई के लिए जलए बीजए खादए यंत्र की व्यवस्था करनी चाहिए। व्यापार की वृद्धि के लिए राज्य में चोरोंए डाकुओं ठगों का भय समाप्त करना चाहिए। प्रशासनिक अधिकारियों व राजा को अपने सगे.संबंधियों पर पैनी नजर रखनी चाहिए कि कहीं वह राजकीय शक्तियों का प्रयोग अपने स्वार्थ के लिए तो नहीं कर रहे।

आवश्यकता पड़ने पर व्यापारियों का आर्थिक पोषण भी राज्य की जिम्मेवारी है। देश को बाहरी खतरों से सुरक्षित करने के लिए शक्तिशाली सेना का गठन करना चाहिएए दुर्गों को मजबूत करना चाहिएए सीमावर्ती ग्रामों को सर्वसुविधा संपन्न करना चाहिए ताकि यहां रह रहे लोग सुरक्षा पंक्ति के रूप में वहीं टिके रहें। देश के अंदर और बाहर गुप्तचरों का मजबूत जाल होना चाहिए।

राज्य निराश्रित लोगों जैसे वृद्धोंए बेसहारों दिव्यांगों परितक्याओं विधवाओं के सम्मानपूर्वक जीवन की जिम्मेवारी राज्य को उठानी चाहिए। राजा को दुष्टों व अपराधियों के प्रति यमराज और सज्जनों के प्रति धर्मराज की जिम्मेवारी निभानी चाहिए। इस तरह हम पाएंगे कि गणतांत्रिक व्यवस्था चाहे 26 जनवरी 1950 में हमारे देश में फलीभूत हुई परंतु यह अतीत में भी हमारे समाज में विद्यमान रही है।

आज इस गणतंत्र दिवस पर आओ हम इसी प्रजातांत्रिक भावनाओं को और मजबूत कर इनमें नए आयाम स्थापित करने का प्रण लें ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हम पर भी उसी भांति गौरव करें जैसे हम आज अपने महान पूर्वजों पर करते हैं।

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