चीनी की चुनौतियों से निपटने का समय

इस साल हमारी विदेश नीति के क्रियान्वयन में भारत.चीन संबंधों पर ध्यान सबसे ऊपर रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि चीन ने अपनी हरकतों से लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को भंग किया है।

अन्यथा आमतौर पर लोगों की नजर ज्यादातर भारत.पाकिस्तान संबंधों पर रहती हैए देश की विदेश और रक्षा संबंधी तरजीहें भी चीन को लेकर अधिक नहीं रहीं। तथापि सभी सरकारें और भारत के सामरिक नीति विचारकों को यह अहसास सदा रहा है कि देश के दीर्घकालीन हितों के लिए पाकिस्तान की बजाय चीन के साथ संबंधों पर ध्यान देना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों का इतिहास लंबे समय से कड़वाहट भरा रहा हैए चूंकि दोनों के बीच भावनाएं जल्द आहत होकर भड़क जाती हैंए जिससे ध्यान का केंद्र बिंदु चीन की अपेक्षा हमेशा पाकिस्तान पर अधिक रहा है।

गौरतलब है कि पाकिस्तान ने भारत के प्रति हमेशा वैर.विरोध वाला रवैया रखा है और हमारे देश में आतंकवाद फैलाने की उसकी सतत कोशिशों को हल्के में नहीं लिया जा सकताए नजरअंदाज करना तो दूर की बात है।

उसकी इन हरकतों की वजह से भारत को खासा जानी.माली एवं आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा हैए किंतु पाकिस्तान के पास न तो वे संसाधन हैंए न ही कभी हो पाएंगेए जिनके बूते वह भारत की प्रगति में प्रभावी ढंग से अड़ंगा डाल सके। दूसरी ओर पिछले चार दशकों में चीन की आश्चर्यचकित करने वाली तरक्की ने उसको इस काबिल बना दिया है कि सामरिक क्षमताओं और अन्य संसाधन प्राप्ति में वह भारत से काफी आगे निकल गया है

। इस अनुकूलता का प्रयोग कर वह भारत के क्षेत्रीय और वैश्विक आधार को कमजोर करके प्रगति में अड़चनें डालना चाहता है। इस वर्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसके द्वारा अपनाया गया आक्रामक रुख आंशिक रूप से इसी उद्देश्य से था।

15 सितंबर को लोकसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने वक्तव्य में चीनी कार्रवाई की तफ्सील से जानकारी दी थी। हालांकि इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया कि इस साल जिस जगह चीनी सैनिक पाए गएए क्या वे वहां पहले से उपस्थित थे या नहीं। इस तरह चीनी घुसपैठ और भारत की सैन्य प्रतिक्रिया पूरी तरह स्पष्ट नहीं होती।

उन्होंने बताया कि अप्रैल माह में चीन द्वारा अपनी सीमा में किए गए सैनिक और शस्त्रास्त्र के जमावड़े का हमें पता था। मई में चीन ने गलवान घाटी क्षेत्र में भारतीय सैनिकों द्वारा गश्त के लिए अपनाए जाते रहे सामान्य एवं रिवायती तौर.तरीकों में अड़चनें डालनी शुरू कर दी थी।

उन्होंने आगे कहा. ष्मई के मध्य में चीन ने कोंग्का लाए गोगरा और पैंगोंग झील के उत्तरी तट समेत कई जगहों पर वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करने की अनेकानेक कोशिशें की थीं। सिंह का दावा है कि हमारे सैनिकों ने भी ष्माकूलष् प्रतिक्रिया दीए लेकिन यह साफ नहीं किया कि ष्माकूलष् से उनका असल तात्पर्य क्या है।

इससे आगे यह भी कहाए ष्चीनियों ने 6 जून को दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच हुई सहमति को भी भंग किया और इसकी परिणति में 15 जून को गलवान में आमने.सामने की हिंसक झड़प वाली स्थिति पैदा हुई।

जहां हमारे वीर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी वहीं चीनियों को भी जानी नुकसान समेत भारी कीमत चुकानी पड़ी है।ष् उनका कहना था.ष्जारी वार्ताओं के बावजूद चीनियों ने 29.30 अगस्त की रात फिर से पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की थीए किंतु इस मर्तबा फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मुस्तैद हमारे सुरक्षा बलों द्वारा सही समय पर की गई दृढ़ प्रतिक्रिया से यह प्रयास सफल नहीं हो पाए।ष्

अंत में उन्होंने लोकसभा को सूचित किया.ष्हाल की घड़ीए चीनियों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ और अपनी ओर काफी अंदर बड़ी संख्या में सैनिक और उपकरण एकत्र कर रखे हैं। पूर्वी लद्दाख में गोगराए कोन्गा ला और पैंगोंग झील के उत्तरी एवं दक्षिणी तट पर कई जगहों पर तनाव के बिंदु बने हुए हैं।

चीनी कार्रवाई पर अपनी प्रतिक्रिया पर उन्होंने कहा कि अपने हितों के रक्षार्थ ष्हमारे सुरक्षा बलों ने भी इन इलाकों में जवाबी तैनाती की है। राजनाथ सिंह ने इस मामले को संवेदनशील विषय बताते हुए लोकसभा की सहमति का आह्वान किया कि विस्तृत जानकारी देने पर जोर न डाला जाए।

संसद में दिए इस बयान के बाद से ही दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी वार्ताएं जारी हैं लेकिन जमीनी हकीकत क्या है और चीनी पेशकश क्या हैए इस बारे में कोई आधिकारिक वक्तव्य जारी नहीं किया गयाए लेकिन मीडिया की खबरों से यह निष्कर्ष निकलता है कि 1990 के दशक में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति सुनिश्चित करने वाले समझौते की भावना और संधि को अक्षरशः लागू करने को चीन अनिच्छुक है। हालांकि लगता है कि भारत सरकार लंबी खिंचने वाली समझौता वार्ताओं के लिए मन बनाए हुए है। इसके पीछे का कारण शायद यह है कि विगत में भी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बनते रहे हैंए जिन्हें सुलझाने में कई वर्ष लगे थेए हालांकि यह स्थिति सुखदायक नहीं है।

दुर्भाग्यवशए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुई घुसपैठ का एक चिंताजनक पहलू है कि देश के लिए रक्षा और विदेश नीति जैसे विशुद्ध राष्ट्रीय विषयों पर घरेलू राजनीति का प्रवेश होना।

एक ओर मोदी सरकार यह दिखाने को दृढ़संकल्प है कि पिछली कांग्रेसी सरकारों के मुकाबले उसने भारत की भूमि को पूरी तरह सुरक्षित रखा है तो दूसरी तरफ कांग्रेस इस प्रसंग को देश की रक्षा करने में सत्ताधारियों की कमजोरी बता रही है।

इसे लेकर दोनों पक्षों द्वारा राजनीतिक नबंरबाजी बनाने का प्रयास करना बेमानी है और राष्ट्रीय हितों के लिए घातक भी। बिना शक यह समय है कि तमाम राजनीतिक दल एकता का परिचय देते हुए देश को दरपेश गंभीर चुनौती पर सरकार के साथ खड़े दिखाई दें। इससे क्षेत्र और इससे परे सही संकेत जाएगा।

चीन ने अपने ताजा कृत्यों से पूर्व में अपनाई गई उन नीतियों को बेमानी कर डाला है जो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थायित्व के लिए शांतिपूर्ण उपायों पर निर्भर थीं। चीन को लेकर विदेश एवं अन्य नीतियां नये सिरे से बनाने की जरूरत है ताकि वहां से होने वाले आयात पर हमारी निर्भरता कम हो सके।

प्रधानमंत्री मोदी का आत्मनिर्भर भारत का आह्वान सामयिक और सामरिक दृष्टि से भी मौजूं है। इन नयी नीतियों में वे पहलू भी शामिल हों जो भारत के कुछ विदेशी संबंधों का पुनरावलोकन करें। मसलनए हिंद.प्रशांत क्षेत्रए एकदम साथ लगते पड़ोसी मुल्क और मुख्य ताकतों से रिश्तेए कम.से.कम उस नजरिए से जो चीन से दरपेश चुनौतियों के दृष्टिगत हों।

इस साल कुछ कदम इस ओर उठाए गए हैंए जैसे कि क्वाड नामक संगठन में भारत की सक्रियता बढ़ानाए परंतु इसके लिए अभिनव कार्य.विधि बनानी होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पड़ोसी देशों में चीन की बढ़ती पकड़ भारतीय हितों पर गलत असर न डाल पाए।

जाहिर है चीन की आक्रामकता को नाथने की जरूरत के मद्देनजर भारत और अमेरिका के हित आपस में एक समान हैंए लेकिन चीन को लेकर बाइडेन प्रशासन क्या रुख और दिशा अपनाएगा इस बारे में अभी पक्का नहीं है।

चीन को लेकर बाइडेन प्रशासन के साथ ईमानदार तालमेल रखना मोदी सरकार की एक आवश्यकता.नीत मजबूरी भी हैए हालांकि अंततः चीन की धमकियों से निपटने के लिए भारत को अपनी क्षमताओं पर ही निर्भर होना पड़ेगा।

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