छावला गैंगरेप में दोषियों को सजा-ए-मौत के बाद अब रिहाई, पढ़िए क्या कहा परिजनों और लड़ाई लड़ने वाले वकील ने

दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने छावला गैंगरेप (Chhawla Gang Rape)के सभी आरोपियों (Accused) को सोमवार को बड़ी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से परिवारवाले निराश हैं. पीड़िता के पिता ने (Father) ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हमलोग टूट गए हैं. आज आरोपियों की वह बात सच साबित हुई है, जो कोर्ट परिसर में वे लोग बोला करते थे. कोर्ट परिसर में ही आरोपी हमलोगों को मारने काटने की धमकियां दिया करते थे. फिर भी हमलोग आगे की लड़ाई जारी रखेंगे.’ बता दें कि दिल्ली के छावला इलाके से 9 फरवरी 2012 को उत्तराखंड की 19 साल की लड़की का अपहरण कर लिया गया था. 14 फरवरी को लड़की की लाश हरियाणा के रेवाड़ी से बरामद हुई थी. इस मामले को लेकर पहले दिल्ली की निचली अदालत और फिर हाईकोर्ट ने भी तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों को संदेह का लाभ देते हुए रिहा करने का आदेश दिया.

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी पक्ष ठोस सबूत देने में नाकाम रहा, इसलिए इस जघन्य अपराध से जुड़े इस मामले में आरोपियों को बरी करने के सिवाय अदालत के पास कोई और विकल्प नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालत नैतिकता या संदेह के आधार पर किसी को सजा देने की इजाजत नहीं देता. दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी मामले की सुनवाई में कहा था, ‘ये वो हिंसक जानवर हैं, जो सड़कों पर शिकार ढूंढते हैं.’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित पक्ष के पास ये हैं विकल्प
पीड़िता के पिता ने कहा, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बोलने वाला कौन हूं? समझ नहीं आ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला कैसे पलट दिया? सुप्रीम कोर्ट ने हमारे साथ न्याय नहीं किया. इसके बावजूद हम लड़ाई जारी रखेंगे. हमारे वकीलों ने कहा है कि आप निराश न हों हमलोग बड़ी बैंच में अपील दायर करेंगे.’

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पीड़ित पक्ष के वकील का ये कहना है
छावला गैंगरेप-मर्डर मामले में पीड़ित पक्ष की वकील चारू वली खन्ना कहती हैं, ‘यह केस को रेयरेस्ट ऑफ रेयर कैटेगरी में रखा गया था. निचली अदालत से सुनाई गई सजा को हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था. खास बात यह है कि इस केस का डीएनए जिस एक्सपर्ट ने किया था, उसी एक्सपर्ट ने निर्भया केस की भी डीएनए जांच की थी. ऐसे में अब हमलोग पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला किया है. पुनर्विचार याचिका उसी जज के सामने की जाती है, जिस जज ने फैसला सुनया है. अब इस केस के एक जज रिटायर हो चुके हैं, इसलिए हमलोग पांच जजों के बैंच में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने जा रहे हैं.’

कब हुई थी छावला गैंगरेप?
आपको बता दें कि 9 फरवरी, 2012 को गुरुग्राम के एक निजी कंपनी में काम करने वाली 19 वर्षीय पीड़िता घर लौट रही थी. छावला कैंप में उसके घर के पास से ही उसका अपहरण कर लिया गया था. कुछ दिनों बाद हरियाणा के रेवाड़ी जिले के रोधई गांव में लड़की का शव मिला, जिसमें कई चोटें और जलने के निशान थे. शव परीक्षण से पता चला कि उस पर कार के औजारों, कांच की बोतलों और नुकीली धातु की वस्तुओं से हमला किया गया था.

तीनों आरोपियों के बारे में हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
तीन कथित आरोपियों राहुल, रवि और विनोद को दिल्ली की निचली अदालत ने 19 फरवरी, 2014 को मौत की सजा सुनाई. निचली अदालत के फैसले को उसी साल 26 अगस्त को दिल्ली उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था और कहा था कि जिस क्रूर तरीके से लड़की का अपहरण करने से पहले और बाद में शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया गया और बलात्कार किया गया.

इस फैसले को लेकर क्या कहते हैं लोग
अब कई समाजसेवी संगठन और राजनीति से जुड़े लोग भी आरोपियों के बरी होने पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं. उत्तराखंड से जुड़े सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों की बैठक मंगलवार को पंचकुइयां रोड स्थित गढ़वाल भवन में बुलाई गई है. दिल्ली में उत्तराखंड लोक मंच के अध्यक्ष बृजमोहन उप्रेती कहते हैं, ‘निचली अदालत और हाईकोर्ट से फांसी पाने वाले तीनों आरोपी अगर दोषी नहीं हैं तो फिर कौन है? यह तो अदालत और राज्य ही बताए कि लड़की का हत्यारा कौन है? हमलोग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे.’

क्या पैरवी कमजोर हुई?
वहीं, उत्तराखंड कांग्रेस ने कहा है कि तीनों आरोपी बरी हुए हैं तो इसमें सरकार की तरफ से कमजोर पैरवी हुई है. ऐसे में दिल्ली सरकार को चाहिए कि अब इस फैसले के खिलाफ बड़ी बैंच में जाए.’ आपको बता दें कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. दिल्ली पुलिस ने भी कोर्ट के सामने सजा कम किए जाने का विरोध किया था और कहा था कि यह अपराध केवल पीड़िता के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह समाज के खिलाफ अपराध है.

दोषियों का अदालत में क्या है तर्क
वहीं, सुप्रीम कोर्ट में दोषियों के तरफ से पैरवी करने वाले वकील ने कहा था कि इस मामले में उसके मुअक्किलों की उम्र, फैमिली बैकग्राउंड और क्रिमिनल रिकॉर्ड को भी ध्यान में रखा जाए. दोषी पक्ष के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एक मुअक्किल विनोद दिमागी रूप से कमजोर है. साथ ही पीड़िता को लगी चोटें भी उतनी गंभीर नहीं थी. हालांकि, इस दलील के विरोध में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भारती ने कहा कहा कि 16 गंभीर चोटें थीं औऱ लड़की की मौत के बाद उस पर 10 वार किए गए. ऐसे ही अपराध मां-बाप को मजबूर करते हैं कि वो अपनी बेटियों के पंख काट दें.

कुलमिलाकर 7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान तीन जजों की बैंच ने अपने फैसले में कहा कि भावनाओं को देखकर सजा नहीं दी जा सकती है. सजा तर्क और सबूत के आधार पर दी जाती है. इसके बाद सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने दोषियों को बरी कर दिया. हालांकि, सीजेआई यूयू ललित सोमवार को यह फैसला सुनाने के बाद रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में पीड़ित पक्ष ने अब पांच जजों के पीठ के सामने अपील करने का फैसला किया है.

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