सूर्यदेव को समर्पित इस पर्व पर करें मां लक्ष्मी की भी उपासना
सूर्यदेव जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे संक्रांति कहा जाता है। सूर्यदेव कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे तुला संक्रांति कहा जाता है। ओडिशा और कर्नाटक में इस पर्व का विशेष महत्व है।
किसान इस दिन को धान में दाने के आने की खुशी में मनाते हैं। सूर्यदेव के तुला राशि में रहने वाले पूरे एक माह पवित्र जलाशयों में स्नान करना शुभ माना जाता है। तुला संक्रांति पर मां लक्ष्मी को ताजे धान अर्पित किए जाते हैं।
तुला संक्रांति के दिन तीर्थ में स्नान, दान और सूर्यदेव की पूजा करने से आयु और आजीविका दोनों में सकारात्मक वृद्धि होती है। तुला संक्रांति पर सूर्यदेव की पूजा से सकारात्मक ऊर्जा मिलने के साथ इच्छा शक्ति में वृद्धि होती है।
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान-पुण्य करना शुभ फलदायी माना जाता है। इस दिन दान करने से कई गुना पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन मां पार्वती और मां महालक्ष्मी की पूजा का विधान है।
मान्यता है कि इस दिन सपरिवार मां महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करने और माता लक्ष्मी को चावल अर्पित करने से जीवन में कभी अन्न और धन की कमी नहीं होती है।
तुला संक्रांति पर सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय का समय उत्तम है। सूर्यदेव को जल अर्पित करें। तुला संक्रांति के दिन माता पार्वती और मां कावेरी की पूजा का भी विधान है। इस दिन माता पार्वती को विशेष रूप से चंदन का लेप लगाया जाता है।