सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने दिया विभाजित फैसला, चीफ जस्टिस को भेजी सिफारिश
दिल्ली : कक्षाओं में हिजाब (Hijab) पर कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) का प्रतिबंध रहना चाहिए या नहीं, इसको लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने अपनी-अपनी राय जाहिर की है. दो जजों की बेंच ने विभाजित फैसला सुनाया है. इस बेंच के अध्यक्ष जस्टिस हेमंत गुप्ता ने सिफारिश की है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI ) तीन जजों वाली पीठ का गठन करें ताकि यह तय हो सके कि प्रतिबंध रहेगा या नहीं. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने आदेश में कहा कि सरकार के आदेश को साक्षरता और शिक्षा को बढ़ावा देने के राज्य के लक्ष्य के विपरीत नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह संविधान के तहत अनिवार्य है.
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इधर बेंच के दूसरे जज जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि वह ‘सम्मानपूर्वक असहमत’ हैं और प्रतिबंध को हटाने के पक्ष में हैं, क्योंकि लड़कियों की शिक्षा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. वहीं, जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने आदेश में कहा सरकार का आदेश केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि छात्राओं द्वारा यूनिफॉर्म का पालन किया जाए, इसको यह नहीं कहा जा सकता कि राज्य आदेश के माध्यम से छात्रों को शिक्षा तक पहुंचने से रोकना चाहती है. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध का समर्थन किया है. उन्होंने अपने आदेश में कहा कि पंथनिरपेक्षता सभी नागरिकों के लिए लागू है, इसलिए एक धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक प्रतीक पहनने की अनुमति देना धर्मनिरपेक्षता के विरूद्ध है. इस लिए सरकार के आदेश को धर्मनिरपेक्षता के नैतिक सिद्धांत या कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 के उद्देश्य के खिलाफ नहीं कहा जा सकता है.
शिक्षा पाने का अधिकार लेकिन निर्धारित यूनिफॉर्म का पालन किया जाए
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत छात्रों को शिक्षा पाने का अधिकार तो है लेकिन उन्हें इस बात का अधिकार नहीं है कि सेकुलर स्कूल से यूनिफॉर्म के अतिरिक्त (हिजाब) कुछ पहनने का आग्रह कर, सरकारी आदेश केवल यह सुनिश्चित करता है कि छात्रों द्वारा निर्धारित यूनिफार्म का पालन किया जाए. कर्नाटक हाई कोर्ट ने प्रतिबंध को हटाने से इनकार करते हुए मुस्लिम छात्राओं को कक्षा में हिजाब पहनने की अनुमति देने के अनुरोध को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां वकीलों ने दलील देते हुए कहा कि कक्षा में हिजाब पहनने से रोकने से उनकी शिक्षा पर असर होगा, वे कक्षाएं छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगी. इस मामले में कर्नाटक सरकार ने प्रतिबंध का बचाव किया था.