पीएम मोदी करेंगे बाबा महाकाल कॉरिडोर का लोकार्पण, जाने इस मंदिर से जुड़ी रोचक बातें

Mahakal temple: भगवान शिव के भक्त जीवन में एक बार उज्जैन के महाकाल मंदिर के दर्शन जरूर करना चाहते हैं. कई लोगों का ये सपना साकार होता भी है, वहीं कई लोग आज भी दर्शन की आस में हैं. हालांकि, महादेव के भक्तों के लिए खुशी की बात ये है कि विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल कॉरिडोर (Jyotirlinga Baba Mahakal Corridor) का 11 अक्टूबर, दिन मंगलवार यानी कल लोकार्पण होने वाला है. यह शुभ काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. इसके बाद इस ऐतिहासिक कॉरिडोर को आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा. हिंदू धर्म में महाकाल मंदिर की बहुत महिमा मानी गई है. इस मंदिर से जुड़ी हर जानकारी हर शिवभक्त जानना चाहता है तो आज हम आपको इस मंदिर के इतिहास और परिसर से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी आपके साथ साझा करेंगे.

महाकालेश्वर मंदिर से जुड़ी वेबसाइट के मुताबिक यह मंदिर पहली बार अस्तित्व में कब आया, इसके बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है. हालांकि, पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना ब्रह्मा जी ने की थी. प्राचीन काव्य ग्रंथों में भी भव्य महाकाल मंदिर का उल्लेख किया गया है. कहा जाता है कि इस मंदिर की नींव व चबूतरा पत्थरों से बनाया गया था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था. मान्यता के अनुसार गुप्त काल से पहले इस पर कोई शिखर नहीं था, बल्कि छतें लगभग सपाट थीं.

पुराणों में है महाकाल मंदिर का उल्लेख

मेघदूतम के प्रारंभिक भाग में, कालिदास ने महाकाल मंदिर का एक आकर्षक विवरण दिया है. शिवपुराण अनुसार नन्द से आठ पीढ़ी पहले एक गोप बालक द्वारा महाकाल की प्रतिष्ठा हुई थी. आपको बता दें कि उज्जैन का प्राचीन नाम उज्जयिनी है. यहां मौजूद महाकाल वन में स्थित होने के कारण यह ज्योतिर्लिंग भी महाकाल कहलाया. स्कन्दपुराण के अवन्ती खण्ड में भगवान महाकाल का भव्य प्रभामण्डल प्रस्तुत किया गया है.

भव्य महाकाल मंदिर परिसर कैसा है?

मंदिर परिसर की बात करें तो यह मंदिर तीन मंजिला है. सबसे नीचे महाकालेश्वर, मध्य में ओंकारेश्वर और ऊपरी हिस्से में नागचंद्रेश्वर के लिंग स्थापित हैं. कहा जाता गहै कि तीर्थयात्री केवल नाग पंचमी पर नागचंद्रेश्वर लिंग के दर्शन कर सकते हैं. इस मंदिर-परिसर में कोटि तीर्थ नाम का एक बहुत बड़ा कुंड भी है, जिसकी शैली सर्वतोभद्र बताई जाती है. हिंदू धर्म में इस कुंड और इसके पवित्र जल का बहुत महत्व माना जाता है. विस्तार से बताएं तो इस कुंड की सीढ़ियों से सटे मार्ग पर परमार काल के दौरान बनाए गए मंदिर की मूर्तिकला की भव्यता को दर्शाने वाले कई चित्र देखे जा सकते हैं. वहीं कुंड के पूर्व में एक बड़ा बरामदा है जिसमें गर्भगृह की ओर जाने वाला रास्ता व प्रवेश द्वार है. इसी बरामदे के उत्तरी भाग में एक कोठरी में है, जिसमें श्रीराम और देवी अवंतिका की पूजा की जाती है.

दिखती वास्तुकला की अनूठी मिसाल

बात मुख्य मंदिर की करें तो इसके दक्षिणी हिस्से में शिंदे शासन के दौरान बनाए गए कई छोटे शैव मंदिर हैं, जिनमें वृद्ध महाकालेश्वर, अनादि कल्पेश्वर और सप्तर्षि के मंदिर प्रमुख हैं. ये वास्तुकला के उल्लेखनीय नमूने माने जाते हैं.

महाकालेश्वर लिंगम देखने में बहुत भव्य है. चांदी से मढ़वाया गया नागा जलाधारी और गर्भगृह की छत को ढंकने वाला छत्र और चांदी की प्लेट मंदिर में अतिरिक्त भव्यता जोड़ती है. ज्योतिर्लिंग के अलावा, भगवान गणेश-कार्तिकेय और मां पार्वती के सुंदर और छोटे आकार के चित्र गर्भगृह में देखे जा सकते हैं. दीवारों पर भगवान शिव की स्तुति उकेरी गई है. यहां नंदा दीपा हमेशा जलती रहती है. बाहर निकलते समय एक हॉल में नंदी विराजमान हैं. महाकालेश्वर का मंदिर वास्तुकला की भूमिजा, चालुक्य और मराठा शैलियों का एक खूबसूरत मिश्रण है.

‘आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तुते’

इसका अर्थ है आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है. आपको बता दें कि महाकाल मंदिर की उत्पत्ति अनादी काल से ही मानी जाती है. मान्यता ये भी है की महाकाल मंदिर में स्वयं भू शिवलिंग है. इस मंदिर में चार आरती होती हैं, जिसमें सबसे मुख्य सुबह होने वाली भस्म आरती को माना जाता है.

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मंदिर में पूजा-अभिषेक, आरती, श्रावण मास में जुलूस, हरिहर-मिलाना जैसी प्राचीन परंपराओं को जीवित रखा गया है. यहां सुबह की भस्मारती, महाशिवरात्रि, पंच-क्रोसी यात्रा, सोमवती अमावस्या आदि मंदिर के अनुष्ठानों के साथ जुड़े विशेष धार्मिक अवसर हैं. कुंभ के दौरान मंदिर-परिसर की उचित मरम्मत और जीर्णोद्धार किया जाता है. साल 1980 में यात्रियों की सुविधा के लिए एक अलग मंडपम का निर्माण किया गया था.

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