भिंड में पहली बार पितृपक्ष में हुआ सामूहिक पिंडदान, जानिए क्यों जरूरी है भोजन में उड़द की दाल
भिंड : पितरों के मोक्ष के लिए कनागत यानी श्राद्धपक्ष में पिंडदान किया जाता है. पहली बार शहर के वॉटर वर्क्स स्थित श्रीराम मंदिर में सामूहिक पिंडदान किया गया. 25 परिवारों ने अपने पुरखों की मुक्ति के लिए पानी दिया और साधु-संतों को भोजन कराया. यह सामूहिक तर्पण गायत्री परिवार द्वारा किया गया. इस मौके के भोजन में उड़द दाल का विशेष महत्त्व बताया गया है.
गया में जिस तरह पितरों का पिंडदान कराया जाता है, ठीक उसी परंपरा के अनुसार पंडित राधेश्याम दीक्षित ने भिंड में श्राद्धकर्म कराया. 15 दिन चलनेवाले पितृपक्ष में यह कार्य गायत्री परिवार द्वारा एक दिन सामूहिक रूप से किया गया. ऐसा माना जाता है कि जिस घर में पितृदोष होता है, उस परिवार में लोग शारीरिक रूप से परेशान रहते हैं. पितरों को शांत करने के लिए श्राद्धपक्ष में विशेष प्रकार से पिंडदान किया जाता है. ब्राह्मणों को भोजन कराने और पूर्वजों के नाम पर पिंडदान करने से समृद्धि आती है.
ऐसे कराया पिंडदान
गायत्री परिवार की सदस्य ममता श्रीवास्तव ने बताया कि पिंडदान के लिए सबसे पहले जौ के आटे के पिंड बनवाए गए. दो तसले रखकर, एक को पानी से भर लिया गया. दूसरे तसला में कुश (घास) लेकर जनेऊ पहनाया. फिर हाथ में कुश देकर मंत्रोच्चार के बीच उसी कुश से दूसरे बर्तन में पानी दिया. यह विधि दिशा बदलकर की जाती है. कहा जाता है कि पानी दक्षिण दिशा में दिया जाता है. पानी देकर पिंड बनवाए गए. गायत्री परिवार ने यह कार्यक्रम सामूहिक रूप से कराया. पंडित राधेश्याम दीक्षित ने गायत्री हवन के साथ ही पिंडदान कर पूजा करवाई.
भोजन में उड़द की दाल अहम
तर्पण के दौरान जिस तरह पूजा-पाठ का विशेष ध्यान रखा जाता है, उसी तरह से साधु-संतों को भोजन कराने का महत्त्व है. श्रीराम मंदिर में पितरों के लिए लोग 25 पूड़ी, उड़द की दाल, खीर, पापड़, दहीबड़ा लेकर पहुंचे. पितरों को भोग देकर साधु-संतों को खिलाया. बताया जाता है कि भोजन में उड़द की दाल पकाई जाती है. गायत्री परिवार द्वारा बताया गया कि इस विधि से तर्पण करने से रूठे पितरों को मनाया जा सकता है.
यजमानों से नहीं ली जाती दक्षिणा
खास बात यह है कि गायत्री परिवार द्वारा यजमानों से दक्षिणा नहीं ली जाती है. पंडित राधेश्याम जी ने बताया अपने पूर्वजों को तुष्टि, शांति, और सदगति की कामना करेंगे. अदृश्य रूप से पितर हमारे जीवनयात्रा में सहायक रहते हैं, इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने पितरों को कम से कम इस पितृपक्ष में तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध, यज्ञ अवश्य करें.