सावधानी से सुनवाई 

ज्ञानवापी विवाद न्यायिक समाधान की दिशा में अगर बढ़ चला है, तो इसका स्वागत होना चाहिए। आज देश जिस स्थिति में है, विवाद के ऐसे मसलों को अदालतों के बाहर खुला नहीं छोड़ा जा सकता। ऐसे मामलों को सबके लिए खोले रखने के अपने बड़े खतरे हैं और ऐसे खतरों से देश पहले भी गुजर चुका है। वाराणसी की जिला अदालत ने सोमवार को ज्ञानवापी में देवताओं की दैनिक पूजा की अनुमति के लिए उपासकों के अनुरोध को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेजामिया समिति की याचिका खारिज कर दी, तो यह कोई अचरज की बात नहीं है। इंतेजामिया समिति की इच्छा के पालन से ज्यादा जरूरी है कि अदालत तथ्य देखकर फैसला करे। इस सिलसिले में समिति यह साबित करे कि ज्ञानवापी में कोई पूजा स्थल नहीं है। केवल भावना में बहकर इस मुकदमे को नहीं जीता जा सकता, अकाट्य प्रमाण चाहिए, ताकि सवाल उठाने वालों का मुंह बंद किया जा सके। अब आगे जहां इंतेजामिया समिति को यह सिद्ध करना होगा कि ज्ञानवापी में शृंगार गौरी की उपस्थिति नहीं है, तो वहीं सामने वाले पक्ष को शृंगार गौरी की उपस्थिति के प्रमाण पेश करने होंगे। हालांकि, ज्ञानवापी के बचाव में इंतेजामिया समिति ऊपरी अदालत में अपील करेगी। उसकी एकमात्र कोशिश है कि धर्मस्थल की स्थिति में कोई बदलाव न हो और इस मामले में सुनवाई होने पर बदलाव की आशंका-संभावना है। वैसे लोगों में अगर यह संदेश गया कि इंतेजामिया समिति सुनवाई से बचना चाहती है, तो इससे उसका पक्ष ही कमजोर होगा। दूसरी ओर, समस्या यह है कि सुनवाई को अगर रोका गया, तो विवाद बढ़ेगा। यहां यह तर्क पेश किया जा सकता है, जिसमें धर्मस्थलों की पुरानी स्थिति में किसी तरह की छेड़छाड़ की मनाही है, पर महज इसी आधार पर अब सुनवाई को रोका नहीं जा सकता। अंतत: अकाट्य साक्ष्यों की शरण में आना होगा। आस्था के आधार पर ही नहीं, वैज्ञानिक आधार पर भी प्रमाणों की पुष्टि करनी पड़ेगी। एक विकसित देश में प्रमाणों और वैज्ञानिक प्रामाणिकता के साथ ही कदम आगे बढ़ाने चाहिए। किसी भी पक्ष के साथ अन्याय न हो, यह देखना न्यायपालिका का काम है। अदालतों को धर्म के आधार पर नहीं, प्रामाणिकता के आधार पर ही सुनवाई करनी चाहिए। यह मामला काफी संवेदनशील है और तरह-तरह के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जिन दावों के पीछे प्रमाण नहीं है, उन पर गौर करना अन्याय को बढ़ावा देने से कम नहीं है।
इस मामले में जहां अदालतों को न्याय सुनिश्चित करना चाहिए, वहीं प्रशासन को अमन-चैन सुनिश्चित रखना चाहिए। यह प्रशंसा की बात है कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन सतर्क है और संवेदनशील स्थानों पर चौकसी बढ़ाई गई है। हमारा संविधान मिलकर चलने की बात करता है, न्याय, समता और निष्पक्षता की बात करता है, इसलिए हर एक को संविधान की पालना सुनिश्चित करनी चाहिए। जब देश रोजगार-विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने को लालायित है, तब हम समाज में कट्टरता या वैमनस्य को कतई बढ़ावा नहीं दे सकते। यह अच्छी बात है कि इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही जिला अदालत कर रही थी, अब जब मामला उच्च न्यायालय में जाएगा, तब भी सुप्रीम कोर्ट की निगाह इस पर रहेगी। अब आगे मामले की सुनवाई नए तथ्य व नए सुबूतों के आधार पर ही चलनी चाहिए, ताकि इस विवाद का पटाक्षेप जल्दी हो।  

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