किसानों की मददगार कही जाने वाली सहकारी समितियां घोटाले और गबन की गंगोत्री हो गई?
खंडवा। भ्रष्टाचार होना आम मुद्दा है, मगर उसमें कार्रवाई न होना गंभीर मामला है। पिछले कुछ सालों में आर्थिक अनियमितताओं के मामले इतने बढ़ गये हैं कि अन्य सरकारी विभाग भी यहां होने वाले भ्रष्टाचार को देख तौबा करने लगे हैं।
खंडवा जिले में ही पिछले कुछ सालों में बड़े घोटाले सामने आये हैं, किंतु अधिकांश मामले या तो दब गये या केवल जांच तक ही सीमित रह गये।
जिम्मेदार प्रशासकों की भूमिका भी इसमें संदिग्ध नजर आती है। खंडवा के जसवाड़ी सहकारी समिति के दिवंगत प्रबंधक एवं उसके बेटे ने अपने दोस्तों के नाम से लाखों रुपए का कर्ज लेने और गबन कर जाने का घोटाला सामने आया है।
यह मामला पिछले दो महीने से चर्चा में था। शुरूआती तौर पर इसे दबाने का प्रयास किया गया, किंतु शिवके-शिकायत के बाद विभाग के अधिकारियों को कार्रवाई करना पड़ी।
कुछ समय पूर्व ही पुनासा में सहकारी समिति प्रबंधक व उसके बेटे से लेकर सर्वेयर और चार अन्य लोगों पर गाज गिरी और यहां भी भारी घोटाला सामने आने के बाद पुलिस कार्रवाई की गई। फर्जी तरीके से मूंग खरीदी के मामले का यहां पर्दाफाश हुआ।
अमानक स्तर के मूंग खरीदी के मामला चूंकि यहां उजागर हो गया, इसलिए कार्रवाई भी हो गई, जबकि हकीकत यह है कि पूरे जिले में व्यापारियों से मिलीभगत करके अमानक स्तर के गेहूं, चना, मूंग खरीदी के मामले को नजरअंदाज किये जाते हैं।
दगखेड़ी में हुए फर्जी वितरण के मामले में भी जांच पिछले चार साल से जारी है। उस समय के जिम्मेदार समिति प्रबंधक वीरेंद्र शेखावत और रमेश साकल्ले अन्य सोसायइटियों में पद पाकर मुक्ति पा गये।
लाखों रुपए के प्रमाणित गबन गबन में अब तक पुलिस एफआईआर तक नहीं हो पाई। वहां भी किसानों को बिना जानकारी के ही उनके नाम पर लोन निकल गया और उन्हें पता ही नहीं चला। आज भी लाखों रुपए की रिकवरी किसानों पर बाकी है।
विभाग की सुस्त जांच प्रक्रिया मिलीभगत का स्पष्ट प्रमाण है। अधिकारी आते और चले जाते हैं, किंतु समिति प्रबंधकों को तबादले लेकर उन्हें पुराने अपराधों से मुक्त कर दिया जाता है। दगखेड़ी मामले में सारे आरोपी चिंतामुक्त हैं।
चार साल पहले खंडवा की ही रामेश्वर सेवा सहकारी समिति के नाम से जिला सहकारी बैंक द्वारा 9.95 करोड़ रुपए चेक भारतीय स्टेट बैंक की बाम्बे बाजार शाखा एवं सिविल लाइन शाखा में 9.95 करोड़ रुपए का चेक जमा किया गया था।
दोनों ही चेक आसाम के गुवहाटी की एसबीआई शाखा से वहां की सरकारी संस्था ने जारी किये थे। ये चेक इनके असली होने पर शंका के चलते रोक दिये गये।
इस मामले में सोसायटी उपप्रबंधक सहित कुछ लोगों की जांच हुई, मगर आगे क्या हुआ, करोड़ों रुपए का यह घोटाला कहां गुम हो गया, आज तक पता नहीं, विभाग स्तर से कोई भी यह जानकारी देने को तैयार नहीं है।
आखिर करोड़ों का मामला इतनी आसानी से पुलिस, बैंक अथवा स्वयं सहकारी समिति और जिला सहकाीर बैंक ने कैसे दबा दिया, उसमें किसके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई, यदि 19 करोड़ रुपए भुगतान हो जाता तो क्या होता, इसका मास्टर माइंड कौन है, यह किसी भी जिम्मेदार अफसर ने जानने की कोशिश भी नहीं की है।