जागने का वक्त
सोमवार को शीर्ष अदालत ने देश में वैक्सीन नीति से जुड़ी विसंगतियों और इससे जुड़े मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार से सख्त लहजे में सवाल पूछे और तल्ख टिप्पणियां कीं। ये सवाल वैक्सीन की खरीद, वैक्सीन की उपलब्धता और इसके लिये पंजीकरण से जुड़ी दिक्कतों से भी जुड़े थे। दरअसल, अदालत कोरोना मरीजों की दवा, ऑक्सीजन और वैक्सीन से जुड़े मुद्दों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रही है।
तीन सदस्यीय बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एस. रवींद्र भट्ट और एल. नागेश्वर राव शामिल थे। बेंच के सामने केंद्र सरकार की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अदालत ने कड़े सवाल किये। बेंच ने कहा कि केंद्र सस्ते दाम में वैक्सीन खरीद रही है और राज्यों व निजी चिकित्सालयों के लिये कंपनियां कीमत तय कर रही हैं।
ऐसा क्यों है? वैक्सीन खरीदने के लिये राज्य ग्लोबल टेंडर निकाल रहे हैं, क्या यह केंद्र की पालिसी का हिस्सा है? बेंच ने यह भी पूछा कि केंद्र सरकार डिजिटल इंडिया की दुहाई देती है, जबकि देश में गरीबी व निरक्षरता के चलते श्रमिक वर्ग कैसे कोविन एप पर पंजीकरण करा सकेगा? अदालत का मानना था कि देश में टीके की कीमत में एकरूपता होनी चाहिए।
ऐसा नहीं है कि सही-गलत का निर्धारण सिर्फ केंद्र सरकार ही कर सकती है। जनसरोकारों से जुड़े विषयों में अदालत को हस्तक्षेप करने के पूरे अधिकार हैं। सॉलिसिटर जनरल द्वारा यह कहने पर कि यह नीतिगत मामला है और कोर्ट के पास न्यायिक समीक्षा के अधिकार सीमित हैं, कोर्ट ने दो टूक कहा कि हम आपसे नीति बदलने के लिए नहीं कह रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार को जमीनी हकीकत से वाकिफ होना चाहिए।
लोगों को सरकार की नीति से परेशानी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने माना कि महामारी का संकट बड़ा है और हाल ही में विदेश मंत्री अमेरिका आवश्यक चीजों के लिये गये थे, लेकिन सरकार को अपनी कमियां भी स्वीकारनी चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि यह सुनवाई सरकार को असहज करने के लिये नहीं है, कमजोरी स्वीकारना मजबूती की निशानी भी होती है।
दरअसल, शीर्ष अदालत की बेंच केंद्र सरकार से टीका नीति की वास्तविक स्थिति जानना चाहती है। न्याय मित्र जयदीप गुप्ता ने टीका नीति की विसंगतियों की ओर अदालत का ध्यान खींचते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने राज्यों को टीका खरीद का करार करने को कहा है लेकिन एक तो विदेशी टीका निर्माता कंपनियां राज्यों से करार नहीं करना चाहतीं।
वहीं हर राज्य की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह महंगी वैक्सीन जुटाने में सक्षम हो। हालांकि, टीके के दामों के बाबत पूछे जाने पर सॉलिसिटर जनरल का कहना था कि यदि हम टीकों के दामों से जुड़ी जांच की ओर बढ़ेंगे तो इससे टीकाकरण कार्यक्रम प्रभावित होगा। कोर्ट का मानना था कि देश की संघीय व्यवस्था के तहत बेहतर होता कि केंद्र वैक्सीन खरीद कर राज्यों को देता।
लेकिन केंद्र राज्यों को अनिश्चय की स्थिति में नहीं छोड़ सकता। वहीं केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि उसे ज्यादा टीके खरीदने के कारण कम कीमत पर टीका मिला है। अदालत द्वारा तीसरी लहर की चुनौती में ग्रामीण क्षेत्रों व बच्चों के अधिक प्रभावित होने की आशंका को लेकर पूछे गये सवाल पर केंद्र की ओर जवाब दिया गया कि सरकार ने गंभीर विचार-विमर्श के बाद टीकाकरण नीति का निर्धारण किया है।
यदि इसमें किसी तरह के बदलाव की जरूरत होगी तो सरकार सही दिशा में बदलाव को तत्पर रहेगी। अदालत ने यह भी जानना चाहा कि देश में टीका उत्पादन की क्षमता के अनुरूप क्या साल के अंत तक टीकाकरण के लक्ष्य हासिल कर लिये जाएंगे? इस पर केंद्र के प्रतिनिधि का कहना था कि टीकों की उपलब्धता के आधार पर ही लक्ष्य तय किये गये हैं।
निस्संदेह शीर्ष अदालत ने देश के जनमानस को उद्वेलित कर रहे सवालों का ही केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण चाहा है ताकि जनता में किसी तरह की ऊहापोह की स्थिति न बने। निस्संदेह जनमानस की आशंकाओं का निराकरण जरूरी है।