अन्न का मोल

दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संत तिरुवल्लुवर उच्च जीवन मूल्यों का पालन करते थे। एक बार उन्हें किसी व्यक्ति ने अपने यहां भोजन के लिए आमंत्रित किया। तिरुवल्लुवर निश्चित समय पर भोजन करने के लिए पधारे, मेजबान ने उनके लिए श्रद्धापूर्वक आसन बिछाया एवं उन्हें भोजन परोसने लगा।

भोजन शुरू करने से पूर्व तिरुवल्लुवर ने अपने मेजबान से एक कटोरी में थोड़ा-सा पानी लाने के लिए कहा और उसे अपने पास बराबर में ही रख लिया। उसके बाद उन्होंने अपने झोले में से एक सूई निकाली और उसे पानी वाली कटोरी में डालकर रुचिपूर्वक भोजन किया।

जब भोजन समाप्त हो गया तो मेजबान ने उनसे पूछा कि उन्होंने कटोरी में पानी एवं सूई क्यों रखे थे। संत तिरुवल्लुवर मुस्कुराए और उन्होंने जवाब दिया कि अन्न बहुत ही मूल्यवान है, उसका एक-एक कण किसी का पेट भरता है।

इसीलिए अन्न का एक कण भी बर्बाद न हो, इसे ध्यान में रखते हुए ही जब मैं भोजन करता हूं तो साफ पानी और सूई पास में रख लेता हूं, जिससे यदि उनका एक कण भी नीचे गिर जाए तो उसे सूई की मदद से उठाकर पानी में धोकर ग्रहण कर सकूं।

यह सुनकर मेजबान बहुत प्रभावित हुआ और उसने भी भविष्य में सदैव अन्य बर्बाद न करने की शपथ ली।

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