नहीं मिला आक्सीजन बेड और दुनिया छोड़ गई शुभम की माँ
पंचायत चुनाव ड्यूटी से लौटते ही हो गई बीमार
लखनऊ,संवाददाता। कोरोना काल में कराए गए पंचायत चुनाव ने शिक्षक परिवारों को ऐसे दर्द दिए, जिनकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। ऐसी ही दर्द भरी कहानी बरेली की शिक्षिका मुकेश शुक्ला की है। पंचायत चुनाव की ड्यूटी से लौटीं तो बीमार पड़ गईं। धीरे-धीरे ऑक्सीजन का स्तर घटता गया। कोई अस्पताल उन्हें भर्ती करने को तैयार नहीं था।
इलाज नहीं मिल पाने से ऑक्सीजन का लेवल गिरकर 37 पर पहुंच गया। आखिरकार उनकी जान चली ही गई। शिक्षिका मुकेश के बड़े बेटे दिल्ली में नौकरी कर रहे शुभम ने बताया कि जूनियर हाई स्कूल तिलियापुर में तैनात उनकी मां 15 अप्रैल को चुनाव में ड्यूटी करके सीबीगंज लौटी थीं।
उसी शाम से उन्हें शरीर में तेज दर्द शुरू हो गया और फिर बुखार आ गया। उस वक्त वो दिल्ली में ही थे। पापा रविशंकर शुक्ला मुरादाबाद की निजी कंपनी में कार्यरत हैं। मां के साथ छोटा भाई रहता था, जो डीपीएस में कक्षा नौंवी में पढ़ रहा है।
शुभम ने बताया कि उन्होंने मां से फोन पर पूछा तो बताया गया कि बुखार तो अब हल्का हो गया है मगर कमर में असहनीय दर्द है। 28 अप्रैल को जब शुभम ने मां को फोन किया तो वो सही से बात भी नहीं कर पा रही थीं। इस पर वह दिल्ली से बरेली आ गए। मां की तबीयत तेजी से बिगड़ रही थी। ऑक्सीजन स्तर भी गिरकर 37 पर पहुंच गया था।
उन्होंने शहर के कई अस्पतालों में फोन कर स्थिति बताई मगर कोई भर्ती करने को तैयार नहीं था। कोई एक घंटे में बेड देने की बात कर रहा था तो कोई तीन घंटे में बेड देने की बात कर रहा था। वह करीब तीन घंटे तक अस्पतालों को फोन करते रहे।
शुभम के पिता भी अस्पताल में बेड तलाशते रहे। तलाश अधूरी ही रह गई और मां की जान चली गई। उन्होंने बताया कि मां के जाने से पिता की तबीयत भी खराब हो गई। उनका भी ऑक्सीजन स्तर 80 रह गया था। पिता, शुभम और उनका छोटा भाई भी कोविड पॉजिटिव हो गया था। सभी ने घर पर रहते ही खुद को ठीक किया।
शुभम ने बताया कि कोविड के दौरान वह, छोटा भाई और पिताजी होम आइसोलेशन में थे मगर घर काटने को दौड़ रहा था। इतना खालीपन था कि डर लगने लगा। हर वक्त मां की कमी महसूस हो रही थी तो पिताजी ने फैसला किया हम लोग पैतृक शहर मुरादाबाद रहेंगे। मां के जाने के बाद शुभम ने दिल्ली की नौकरी छोड़ दी है। शुभम ने सरकार से नौकरी और आर्थिक मदद की गुहार लगाई है।