भरुआ सुमेरपुर, हमीरपुर: शिल्पकार नाना साहब की जयंती पर डॉ भवानीदीन ने अर्पित की श्रद्धांजलि

भरुआ सुमेरपुर (हमीरपुर ) कस्बे की संस्था वर्णिता के तत्वावधान में विमर्श विविधा के तहत जरा याद करो कुर्बानी के अंतर्गत 1857 के समर के शिल्पकार नाना साहब की जयंती पर संस्था के अध्यक्ष डॉ भवानीदीन ने श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहब के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। यह सचमुच प्रथम स्वतंत्रता समर के शिल्पकार थे। इनका 19 मई 1824 को बिठूर में जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम नारायण भट्ट तथा माता का नाम गंगाबाई था।

पेशवा बाजीराव द्वितीय ने इन्हें दत्तक पुत्र स्वीकार कर इनकी शिक्षा का समुचित प्रबंध किया। इन्हें हाथी और घोड़े की सवारी तथा अस्त्र-शस्त्र का उचित प्रशिक्षण दिया गया। 28 जनवरी 1851 को पेशवा के निधन के बाद अंग्रेजों ने इन्हें पेशवा का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। नाना ने अजीमुल्ला खां के माध्यम से इंग्लैंड तक महारानी विक्टोरिया के समक्ष अपने दावे का प्रश्न उठाया किंतु सफलता नहीं मिली। तब नाना ने पेशवा की सारी संपत्ति पर कब्जा कर सभी उपाधियां धारण कर ली

अजीमुल्ला खान ने ब्रिटेन से लौटकर इंग्लैंड तथा अन्य देशों की स्थिति से नाना को अवगत कराया। नाना चुप नहीं बैठे और कालपी,दिल्ली और लखनऊ की यात्रा पर निकलकर महान वीरांगना लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और कुवर सिंह जैसे सूरमाओं के संपर्क से आजादी की मुहिम शुरु कर दी। कानपुर और बुंदेलखण्ड मे आजादी की लड़ाई में नाना की प्रभावी भूमिका रही।

इन्होंने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया। नाना ने कई उतार-चढ़ाव देखे।  ऐसा कहा जाता है कि ये नेपाल चले गए। कुछ लोग मानते हैं कि वही पर 1902 में इनकी मृत्यु हो गई। कुछ लोग मानते हैं कि 1859 में नैमिषारण्य में नाना का निधन हुआ। इसमें दो राय नहीं कि वह 1857 के समर के महान सूरमा थे। इस जयंती कार्यक्रम के दौरान पिंकू सिंह ,राधारमण गुप्त, रज्जन चौरसिया,अजय गुप्ता आदि तमाम सदस्य मौजूद रहे।

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