राजपक्षे परिवार का सत्ता से न जाना लोगों के गुस्से का कारण बना

दिल्लीः जून महीने में कुछ दर्जन कार्यकर्ताओं ने कोलंबो के समुद्र तट पर स्थित एक तंबू शिविर में घंटों नियमित रूप से मिलना शुरू कर दिया था. मिलने का कारण श्रीलंका के झंडारोहण विरोध आंदोलन को पुनः पुनर्जीवित कर उसे सड़को तक लाना था.

इस समूह में एक कैथोलिक पादरी, एक डिजिटल रणनीतिकार और एक लोकप्रिय नाटककार शामिल थे. सत्ता बदलने का इनका प्लान उम्मीदों से भी अधिक सफल माना जा रहा है.

देखते ही देखते कुछ ही हफ्तों में कोलंबो की सड़कों पर हज़ारों लोग उतर आए. शुरुआती दौर में पुलिस के साथ झड़प के बाद, प्रदर्शनकारियों ने प्रमुख सरकारी भवनों और आवासों पर कब्जा कर लिया. दबाव इतना बढ़ गया कि प्रचंड बहुमत से चुने गए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके प्रधानमंत्री को पद छोड़ने पर विवश होना पड़ा.

इस टीम का हिस्सा रहे चमीरा डेडुवेज (जो एक प्रमुख विज्ञापन फर्म में डिजिटल रणनीतिकार भी हैं) ने रॉयटर्स को बताया कि वह अभी भी इसपर कार्य कर रहे है.

उन्होंने विरोध प्रदर्शन की सफलता पर कहा कि यह 50 प्रतिशत पूर्वचिन्तन और कोआर्डिनेशन था, अन्य 30 प्रतिशत लोगों की इच्छा और 20 प्रतिशत भाग्य ने साथ दिया”.

इंटरव्यू में उन छोटी बैठकों के दिग्गजों ने बताया कि कैसे वह सब व्यापक रूप से ज्ञात आंदोलन “अरागलया”, जिसका हिंदी में अर्थ संघर्ष है, में नया जोश भरने पर सहमत हुए थे.

आंदोलन की शुरुआत मार्च में हुई थी, जब हजारों लोग लंबी बिजली कटौती और बढ़ती कीमतों पर अपना गुस्सा निकालने के लिए सड़कों पर उतरे थे. आंदोलनकारी राजपक्षे परिवार पर भी पद को छोड़ने का दबाव बना रहे थे जोकि पीछे 20 वर्षो से देश की सत्ता में अहम किरदार निभा रहे है.

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