बिहार के महादलित बहुल गांव में सिर्फ 2 लड़के ही मैट्रिक पास

दिल्लीः

21वीं सदी में यदि आपको कोई कहे कि तकरीबन 1 हजार की आबादी वाले गांव में सिर्फ 2 लड़के ही मैट्रिक पास हैं तो क्‍या आप इस बात पर यकीन करेंगे? आपको विश्‍वास हो या न हो लेकिन यह सच है. महादलित बहुल इस गांव के अधिकांश लोग ईंट-भट्ठों पर काम करते हैं. इस गांव के लोगों को शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है. यही वजह है कि इस गांव में सिर्फ 2 लड़के ही मैट्रिक पास हैं. बेटियां या बहुओं के पढ़ने-लिखने की तो कल्‍पना ही नहीं की जा सकती है. लेकिन अब इस गांव की तस्‍वीर भी बदलने लगी है. बेटियां शिक्षा की मशाल जलाने लगी हैं.

जिले के बरहट प्रखंड इलाके के पत्नेश्वर पहाड़ी की तलहटी में बसा गांव महादलित बहुल है. गांव की आबादी लगभग 1000 है. शिक्षा के मामले में यह गांव बहुत पीछे है. आजादी 7 दशक बाद भी इस गांव के लोग अब तक शिक्षा से दूर हैं. गरीबी के कारण पेट पालने और घर संभालने के लिए ग्रामीण ईंट-भट्ठों पर या कहीं और मजदूरी करते आ रहे हैं. पत्नेश्वर गांव में अब तक मात्र 2 लडके ही मैट्रिक पास हैं. जबकि यहां की बेटी या बहू पढ़ी लिखी नहीं हैं, लेकिन अब इस गांव में भी शिक्षा की अलख जलने लगी है. अगले साल (वर्ष 2023) यहां की 4 बेटियां मैट्रिक की परीक्षा देंगी. ये चारों अभी से ही जीतोड़ मेहनत कर रही हैं. ये सभी मलयपुर गांव के कामिनी गर्ल्स स्कूल की छात्रा हैं. इस गांव की बेटी मुस्कान, मुरा, कुन्नी और तिरो सरकारी स्कूल में पढ़ती हैं और हुए पढ़ 

मां-पिता के साथ मजदूरी करने वाली मुरा पढ़ लिखकर टीचर बनना चाहती हैं, जबकि मुस्कान की चाहत कलेक्‍टर बनने की है. इन 4 लड़कियों का शिक्षा के प्रति ललक का असर गांव के बाकी बच्‍चों पर भी पड़ रहा है. यही कारण है कि ईंट-भट्ठा पर काम करने वाली हीना भी इन लोगो के साथ पढाई करने लगी है. इन चार लड़कियों को पढ़ते देख ईंट-भट्ठे पर काम करने वाली हीना पढ़ने के लिए इन लोगों के साथ रहती है.

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