टमाटर, गाजर और चुकंदर से संभव होगा हेल्मिन्थस का इलाज
मिट्टी में रहने वाले परजीवियों से होने वाली बीमारी हेल्मिन्थस का सस्ता इलाज अब संभव है। देवरिया के रहने वाले फार्माकोलाजी के विशेषज्ञ डॉ. अरुण कुमार पांडेय ने इस बीमारी के इलाज के लिए हर्बल दवा खोजी है।
यह दवा टमाटर, गाजर, चुकंदर और आलू में मिलने वाली लाइकोपीन से तैयार की गई है। परजीवियों को निष्क्रिय करने में टमाटर में मिलने वाली लाइकोपीन सबसे ज्यादा कारगर मिली। यह शोध दो अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है। पेटेंट के भी दो चरण पूरे हो चुके हैं।
यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक समेत देश के कई राज्यों में हेल्मिन्थस बीमारी का प्रकोप है। यह बीमारी मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म कीड़ों के जरिए होती है। यह कीड़े दूषित पानी में भी मिलते हैं।
मिट्टी में खेलने वाले बच्चों, काम करने वाले मजदूरों और महिलाओं के नाखून में यह परजीवी घर बनाते हैं। भोजन करने के दौरान परजीवी पेट में चले जाते हैं।
पेट के अंदर जाकर यह परजीवी कई अन्य बीमारियों का कारक बनते हैं। इससे व्यक्ति कुपोषित होता है। लिवर खराब होने लगता है।
अपच, दस्त, उल्टी होती है। नाखून में लंबे समय तक रहने के कारण त्वचा सड़ने लगती है। आंतों से यह परजीवी पहले धमनियों, फिर दिमाग तक पहुंच जाते हैं।
जिससे ब्रेन हेमरेज तक हो सकता है। व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो सकती है। इससे फाइलेरिया भी होता है।
डॉ. अरुण ने बताया कि इस बीमारी के सस्ते व कारगर इलाज के तरीके पर लंबे समय से चल रही उनकी रिसर्च टमाटर पर आकर रुकी। टमाटर, आलू, शकरकंद, चुकंदर और गाजर में मिलने वाले लाइकोपीन का इस परजीवी पर जबरदस्त असर दिखा।
उन्होंने बताया कि यह शोध मध्य प्रदेश के श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मेडिकल साईंसेज में की गई। रिसर्च प्रो. सीके त्यागी और डॉ. सुनील शाह की निगरानी में हुई। इसमें कई खासियत मिली।
लाइकोपीन हेल्मिन्थस पर बेहद कारगर है। इसमें तीन महीने में ही इलाज पूरा हो जाएगा। इलाज की लागत भी एलोपैथिक दवाओं के मुकाबले 50 फीसद से भी कम रहेगी। इससे कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होगा।