मुस्लिम पुरातनपंथियों का भी विरोधी हूं: जावेद अख्तर

जाने-माने पटकथा लेखक एवं गीतकार जावेद अख्तर ने कहा है कि वह मुस्लिम पुरातनपंथियों के उतना ही विरोधी हैं जितना वह हिंदू चरमपंथियों के हैं।

उन्होंने कहा कि अपनी इसी मुखरता के कारण उन्हें मुसलमानों से जान से मारने तक की धमकियां मिल चुकी हैं। जावेद अख्तर ने अपने उस हालिया साक्षात्कार का बचाव किया जिसमें उन्होंने तालिबान और हिंदू चरमपंथियों के बीच तुलना की थी।

उन्होंने कहा कि हिंदू दुनिया में सबसे सभ्य और सहिष्णु लोग हैं, लेकिन जहां अफगानिस्तान में तालिबान को खुली छुट हासिल है, भारत की धर्मनिरपेक्षता उसके संविधान और अदालतों द्वारा संरक्षित है।

उन्होंने यह विचार न्यूज एजेंसी पीटीआई को जारी एक बयान में व्यक्त किये। उनहोंने हाल ही में एक टेलीविजन चैनल से कहा था कि तालिबान ”बर्बर हैं, वहीं भारत में हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों का समर्थन करने वाले’ भी उसी तरह हैं।

उन्होंने ईमेल किये गए बयान में कहा, ”भारत कभी भी अफगानिस्तान जैसा नहीं बन सकता क्योंकि भारतीय, स्वभाव से चरमपंथी नहीं हैं, उदारवादी होना उनके डीएनए में है।”

उन्होंने कहा, ”हां, इस साक्षात्कार में मैंने संघ परिवार से जुड़े संगठनों के खिलाफ अपनी आपत्ति व्यक्त की थी।

मैं ऐसे किसी भी विचारधारा का विरोध करता हूं जो लोगों को धर्म, जाति और पंथ के आधार पर बांटता है और मैं उन सभी लोगों के साथ खड़ा हूं जो इस तरह के किसी भी भेदभाव के खिलाफ हैं।

जानेमाने पटकथा लेखक और गीतकार अख्तर ने कहा कि वह तालिबान और हिंदू दक्षिणपंथ की मानसिकता के बीच कई समानताएं पाते हैं।

अख्तर ने कहा, ”मेरे आलोचक भी इस बात से नाराज़ हैं कि मैं तालिबान और हिंदू दक्षिणपंथी मानसिकता के बीच बहुत सी समानताएं देखता हूं।

वास्तव में, बहुत समानताएं हैं। तालिबान धर्म के आधार पर एक इस्लामी सरकार बना रहा है, हिंदू दक्षिणपंथी एक हिंदू राष्ट्र चाहते हैं।”

उन्होंने कहा, ”तालिबान महिलाओं के अधिकारों पर अंकुश लगाना चाहता है और उन्हें हाशिये पर रखना चाहता है, हिंदू दक्षिणपंथी ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि उसे महिलाओं और लड़कियों की स्वतंत्रता पसंद नहीं है।

उत्तर प्रदेश, गुजरात से लेकर कर्नाटक तक एक रेस्तरां या बगीचे या किसी सार्वजनिक स्थान पर एक साथ बैठने पर युवक-युवतियों को बेरहमी से पीटा गया है।

मुस्लिम कट्टरपंथियों की तरह हिंदू दक्षिणपंथी भी महिलाओं को अपना जीवनसाथी चुनने के अधिकार को स्वीकार नहीं करते हैं।”

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