देशभक्ति

यह घटना उस समय की है जब इब्राहिम गार्दी मराठा तोपखाने के सेनापति थे। वह तन-मन से मराठों के साथ युद्धभूमि में डटे हुए थे। एक दिन उनके शिविर में रात के समय अचानक एक सैनिक ने गुपचुप तरीके से प्रवेश किया और उन्हें सलाम कर बोला, ‘हुजूर, मैं बादशाह अहमद शाह अब्दाली का दूत हूं और उनकी ओर से आपके लिए एक पैगाम लेकर आया हूं।

आपकी आज्ञा हो तो कहूं।’ इब्राहिम गार्दी आवेश में बोले, ‘क्या कहना चाहते हो?’ इस पर वह सैनिक बोला, ‘हुजूर, यदि आप युद्ध में इस्लाम की खातिर अहमद शाह अब्दाली का साथ देंगे तो ऐसा कर आप न सिर्फ अपने मजहब की खिदमत करेंगे, बल्कि ऊंचे ओहदे, बड़ी जागीर और अतुल्य धन-दौलत से भी नवाजे जाएंगे।’

यह कहकर उसने अशर्फियों से भरा एक थैला इब्राहिम गार्दी के पैरों के पास रख दिया। इब्राहिम गार्दी गुस्से से आगबबूला हो गए और गरजकर उस सैनिक से बोले, ‘यदि तुम दूत नहीं होते तो तुम्हारा सिर तुरन्त कलम कर दिया जाता।

तुम सिर्फ मुल्क के ही नहीं अपितु दीन के भी दुश्मन हो। अब्दाली ने न जाने कितने निर्दोष नर-नारियों और बच्चों का बड़ी निर्दयता से कत्ल करवाया है। तुम इसे मजहब की खिदमत कहते हो? अपने वतन के साथ गद्दारी करने वाले को मैं अपने धर्म के साथ गद्दारी मानता हूं।’ इब्राहिम गार्दी का देशभक्ति की भावना से सराबोर रूप देखकर दूत वहां से चला गया।

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