अवैध उत्खनन से उजड़ रही नर्सरी
रीवा। रीवा सहित समूचा विंध्य क्षेत्र वन सम्पदाओं से परिपूर्ण है। अपनी आवश्यकता व चंद पैसों की लालच में क्षेत्र के जंगलों व बेशकीमती वन सम्पदाओं का उत्खनन लोगों द्वारा किया जा रहा है।
बदलते वातावरण के बीच जंगल को बचाने के लिए वन विभाग ही नहीं बल्कि आम नागरिकों को भी आगे आना होगा तभी हम जंगलों को बचा पाने में सफल रहेंगे।
समय रहते यदि पहल न की गई तो हाथ मलने के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होगा। रीवा से कटरा वाया क्योटी-लालगांव स्थित प्रपात से लगी पहाड़ी व जंगली क्षेत्र सोहागी तक जाता है।
इसका क्षेत्रफल कई हजार स्क्वायर किलोमीटर है। स्थानीय लोगों के मुताबिक कभी यह जंगली क्षेत्र भठावा, हिनौती, कांकर तक फैला हुआ था परन्तु गुजरते समय एवं बढ़ती जनसंख्या व मानव की आवश्यकताएं ऐसी बढ़ती गई कि लगभग आधे से अधिक जंगली क्षेत्र का सफाया हो चुका है।
मानवीय अतिक्रमण रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जंगल माफिया द्वारा चोरी छिपे अवैध कटाई एवं जंगली जानवरों का शिकार तो कोई नई बात नहीं है। यह सब प्रशासन की आंखों तले हो रहा है।
इन क्षेत्रों में लगभग रोज गश्त का प्रावधान है ऐसी स्थिति में अवैध कार्य का संचालन लोगों को निराश कर रहा है। इन जंगली क्षत्रों में लगभग रोज गश्त का प्रावधान है ऐसी स्थिति में अवैध कार्य का संचालन लोगों को निराश कर रहा है।
इन जंगली क्षेत्रों में अवैध उत्खनन इतना अधिक किया गया है कि लगभग पहाड़ में कोई भी पत्थर शेष नहीं बचे हैं। प्रशासन का यद्यपि कहना है कि अब अवैध उत्खनन बंद है परन्तु जंगलों की कटाई पर कोई रोक समझ में नहीं आ रही है।
वन विभाग द्वारा कितनी ही नर्सरियां नहीं लगाई गई हैं सूचना के अधिकार के माध्यम से यदि यह जानकारी निकाली जाय तो पता चलेगा कि कागजों में करोड़ों रुपये की नर्सरी प्रोजेक्ट एवं हरियाली प्रोजेक्ट लगाये गये होंगे।
परन्तु भौतिक धरातल पर यह सब शून्य के बराबर है। हिनौती (भवंरगढ़) क्षेत्र में अवैध कब्जा करने के कारण एवं नर्सरी के पत्थर तथा नर्सरी उजाड़ देने के कारण ही पशु बाहरी कृषि क्षेत्र में आ जाते हैं।
अन्यथा यदि नर्सरी एवं सुरक्षित जंगली क्षेत्र होते हुए भला आवारा पशु या जंगली पशु क्या करने गांवों में आयेेंगे। आलम तो यह है कि रीछ या नीलगायों को भी करंट लगाकर मारने का मामला ग्रामीणों द्वारा बताया जा रहा है।
अब यह करंट वाला प्रकरण किस हद तक सही है यह जंगल विभाग चाहे तो निश्चित रूप से पता लगा सकता है। इन जंगली क्षेत्रों में मुख्य रूप से जो लकडिय़ां काटी जा रही हैं यह हरे पौधे होते हैं जिनमें बहुतात में सेधा, महुआ एवं तेंदू सम्मिलित है।