दंभ का सबक

काशी में सालों साथ रहकर दो पंडितों ने धर्म और शास्त्रों का अध्ययन किया। शिक्षा पूरी होने के बाद दोनों विद्वान अपने-अपने गांव की ओर चल पड़े। दोनों ने एक नगर में रात्रि विश्राम किया। नगर के सबसे धनी सेठ ने उनके रहने की व्यवस्था की।

सेठ दोनों के पास पहुंचा और उनसे चर्चा करने लगा। सेठ अनुभवी था। वह जान गया कि दोनों पंडितों में बहुत ज्यादा घमंड है। साथ ही दोनों एक-दूसरे को मूर्ख समझते हैं। उसने मन में विचार किया कि ये दोनों काशी जैसी जगह पर सालों अध्ययन करके आए हैं, लेकिन एक-दूसरे का सम्मान करना नहीं सीखा।

सेठ ने दोनों को बड़े आदरपूर्वक भोजन कक्ष में बुलाया। एक की थाली में चारा और दूसरे की थाली में भूसा परोसा। यह देखकर दोनों पंडित आगबबूला हो गए। इस पर सेठ ने बड़ी ही शांति से जवाब दिया, ‘इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है। जब मैंने आपसे एक से दूसरे के बारे में पूछा था, तो उसने कहा था कि वह तो बैल है।

वहीं दूसरे से पहले के बारे में पूछा था तो उसने कहा था कि वह गधा है। आप दोनों ने ही एक-दूसरे को बैल और गधा बताया, तो मैंने उसी हिसाब से चारा और भूसा थाली में परोस दिया।’ इतना सुनते ही उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया।

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