गाजर घास फसलों के अलावा मनुष्यों और पशुओं के लिए खतरनाक
18 अगस्त, बाँदा। ‘‘गाजर घास (पार्थेनियम) या ‘चटक चांदनी’ एक एकवर्षीय शाकीय पौधा है, जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है। इसकी पत्तियां असामान्य रूप से गाजर की पत्ती की तरह होती हैं।’’ बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा के कुलपति डा. यू.एस.गौतम ने बताया की इस समय गाजर घास एक सामाजिक समस्या बन गयी है, इसे सामूहिक प्रयास से ही रोका जा सकता है।
इसकी भयावता को देखते हुए कुलपति, डा. गौतम ने किसानों, ग्रामीणों, छात्रों एवं सभी नागरिकों से अपील की है कि इसे समय रहते नष्ट करने के सामूहिक प्रयास करें। अपने घर, कालोनी, गाँव, कार्यालय आदि स्थानों से इसे हटाने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए।
कृषि विश्वविद्यालय बाँदा में चल रहे अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार प्रबंधन शोध परियोजना के अन्वेषक डा0 दिनेश साह के अनुसार इसका प्रकोप खाद्यान्न, फसलों में भी देखा गया है। इसकी वजह से फसलों की पैदावार 30-40 प्रतिशत तक कम हो जाती है।
गाजर घास के परागकण, पर्परागित फसलों के मादा जनन अंगों में एकत्रित हो जाते हैं जिससे उनकी संवेदनशीलता खत्म हो जाती है और बीज नहीं बन पातें हैं। इस विनाशकारी खरपतवार को समय रहते नियंत्रण में किया जाना चाहिए।
इस माह इसका ज्यादा प्रकोप
इसके रोकथाम के लिए यांत्रिक, रासायनिक व जैविक विधियों का उपयोग किया जाता है। अगस्त माह में इसका प्रकोप सबसे अधिक होता है, अतः इस माह में इसको नष्ट करना सबसे प्रभावी होता है।
उन्होंने बताया की इस विनाशकारी खरपतवार के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर ही प्रत्येक वर्ष भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के आवाहन पर खरपतवार प्रबंधन निदेशालय द्वारा अगस्त माह में गाजर घास के बारे में जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाता है।
मनुष्य व पशुओं में फैलती है बीमारी
डा० साह ने यह भी बताया की गाजर घास हर तरह के वातावरण में तेजी से उगकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन जाता है।
इसे देश में सबसे पहले 1955 में देखा गया था। इस खरपतवार के सम्पर्क में आने से एग्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा व नजला जैसी घातक बीमारियां हो जाती हैं।
इसे खाने से पशुओं में कई रोग हो जाते हैं। इसके लगातार संर्पक में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एर्लजी, बुखार, दमा आदि की बीमारियां हो जाती हैं। पशुओं के लिए भी यह खतरनाक है।
पौधे में 10000 से 25000 तक बीज पैदा करने की क्षमता
दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट आने लगती है। फूल आने से पहले या फूल आने की अवस्था में इसे उखारकर फेंक देना चाहिए ताकि पौधे में बीज बनने से रोका जा सके। गाजरघास के एक पौधे में 10000 से 25000 तक बीज पैदा करने की क्षमता होती है।
हाथ से उखारते समय इसके सीधे संपर्क में आने से बचना चाहिए। ग्लायफोसेट 2 किग्रा सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या मैट्रीब्यूजिन 2 किग्रा0 सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का प्रयोग फूल आने से पहले किया जाना चाहिए। फसलों में इसके नियंत्रण को कृषि विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।