भारत को नहीं चीन पर भरोसा

भारत और चीन ने हाल ही में पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को तेजी से सुलझाने के लिए सहमति जताई है। इसके लिए दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच बीते हफ्ते 12वें दौर की वार्ता भी हुई और इस दौरा गोगरा पेट्रोलिंग पॉइंट सेनाएं हटाने को भी दोनों देश राजी हुए।

लेकिन चीन की छुपकर वार करने की फितरत से वाकिफ भारत इस सकारात्मक वार्ता को विवाद का अंत मानने में किसी भी तरह की जल्दबादी नहीं करना चाहता है।

भारत को यह याद है कि साल 1986 के अरुणाचल प्रदेश में सुमदोरोंग चू सैन्य गतिरोध को खत्म करने में आठ साल का लंबा समय लगा था और अब मोदी सरकार उसी अनुभव को ध्यान में रखते हुए चीन से अगले कई दौर की वार्ताओं के लिए तैयार है।

मोदी सरकार किसी भी कीमत पर सीमा विवाद सुलझाने में कमजोर नहीं पड़ना चाहती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘यह एक अंतहीन रात है।’ यानी स्पष्ट है कि मोदी सरकार 12वें दौर की वार्ता के सकारात्मक परिणाम को विवाद का अंत नहीं मान रही है। 

भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख में गोगरा हॉट स्प्रिंग और देपसांग बल्ज जैसे सभी इलाकों में बराबरी चाहती है, जहां पीएलए लगातार आक्रामक रुख अपना रहा है। मोदी सरकार में इस बात को लेकर स्पष्टता है कि चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों की बहाली का रास्ते में लद्दाख एलएसी विवाद को सुलझाना पहला कदम है।

मोदी सरकार के लिए पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के बीच आर्थिक रिश्तों की बहाली करने का सवाल ही नहीं उठता है। 

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