साधु बनाम गृहस्थ

यह जानने के लिए कि साधु बड़ा है या गृहस्थ, एक राजा एक साधु के पास पहुंचा। साधु राजा को लेकर दूसरे राज्य में चला गया। वहां का राजा राजकुमारी के लिए स्वयंवर का आयोजन कर रहा था। वे भी वहां खड़े होकर देखने लगे।

राजकुमारी को कोई राजकुमार पसंद नहीं आया। इत्तेफाक से उसी समय एक युवा मुनि वहां आकर खड़ा हो गया। राजकुमारी उस पर मोहित हो गई और उसके गले में वरमाला डाल दी। लेकिन मुनि ने वरमाला निकाल फेंकी और कहा-मैं एक साधु हूं।

 

मैं कैसे विवाह कर सकता हूं? इस पर वहां के राजा ने मुनि को आधा राज्य और बहुत-सा धन देने की बात की, लेकिन मुनि ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। उसके जाते ही साधु और राजा भी वहां से चल पड़े। दोनों ने जंगल में एक पेड़ के नीचे रात्रि विश्राम का निर्णय किया।

उस पेड़ पर एक चिड़कुला और चिड़िया रहते थे। चिड़कुला ने दो मनुष्यों को देख कर चिड़िया से कहा-प्रिये, घर में दो भूखे-प्यासे मेहमान आए हैं और कुछ खाने को नहीं। दोनों ने चूल्हा जला दिया।

चिड़िया कुछ कहती, उसके पहले ही चिड़कुला जलती आग में कूद गया ताकि मेहमान उसका गोश्त खा लें। चिड़िया ने सोचा, इतने से इनका क्या होगा और वह भी जलती आग में कूद पड़ी। राजा और संन्यासी यह सब देख रहे थे। तब संन्यासी ने कहा-राजन, अपनी-अपनी जगह संन्यासी और गृहस्थ दोनों बड़े हैं।

यदि तुम गृहस्थ धर्म का पालन करते हो तो इन पक्षियों की भांति रहो, जिन्होंने दूसरे के लिए अपना शरीर तक दे दिया। यदि संसार से अलग रहना चाहते हो तो उस मुनि की तरह रहो, जिसके लिए एक सुंदर राजकुमारी और सारी धन-दौलत की भी कोई कीमत नहीं।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker