देशभक्ति का जज्बा

फखरुद्दीन अली अहमद के पिता चाहते थे कि उनका पुत्र सरकारी नौकरी करे और ब्रिटिश हुकूमत में बड़ा अधिकारी बने। लेकिन अहमद साहब के मन में देशभक्ति का अंकुर फूट चुका था। अहमद ब्रिटेन में वकालत की पढ़ाई करते हुए भारतीयों के साथ होने वाले अत्याचारों को देख रहे थे।

उनके भारत लौटने के बाद पिता ने उनका परिचय अंग्रेजों से कराना शुरू कर दिया, पर फखरुद्दीन अली अहमद अंग्रेजों की नौकरी करने के लिए तैयार नहीं थे। एक दिन वे अपनी मां से अकेले में बोले, ‘अम्मी, मैं अंग्रेजों की नौकरी नहीं करना चाहता। अंग्रेजों के प्रति मेरे मन में तनिक भी आदर नहीं है। वे हमारी धरती पर कब्जा करके हमारे देश के लोगों का शोषण करते हैं।

भारतीयों को वे निम्न श्रेणी का समझते हैं। इन लोगों की मेहरबानी पर पलना मैं भारी अपमान मानता हूं।’ मां पुत्र की बातें सुनकर उसे अवाक देखती रही। पांच वर्ष इंग्लैंड में बिताने के बाद वे अंग्रेजों के रंग-ढंग देख चुके थे और 23-24 साल की आयु में ही उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें अपने जीवन को किस ओर मोड़ना है।

मां बहुत देर कुछ सोच-विचार कर बस इतना ही कह पाई, ‘मुझे तुझ पर गर्व है।’ यही फखरुद्दीन अली अहमद आगे चलकर अपनी निष्ठा, देशभक्ति और कर्मठता के कारण भारत के पांचवें राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker