विवेक
एक बार श्री श्री परमहंस योगानंद जी की एक शिष्या ने गंभीर भूल कर दी। उसने पश्चाताप किया, ‘मैंने सदा अच्छी आदतों को ही विकसित किया है। यह अविश्वसनीय लगता है कि ऐसा दुर्भाग्य मेरे साथ हो सकता है।
’ परमहंस जी ने कहा, ‘तुम्हारी गलती थी, अच्छी आदतों पर बहुत अधिक भरोसा करना और उचित निर्णय कर सकने के अभ्यास की निरंतर अवहेलना करना, तुम्हारी अच्छी आदतें सामान्य एवं परिचित स्थितियों में सहायक होती हैं, किंतु जब कोई नयी समस्या उत्पन्न होती है तो हो सकता है कि वे तुम्हारा मार्गदर्शन करने में समर्थ न हो तब विवेक आवश्यक होता है।
गहरे ध्यान से तुम प्रत्येक कार्य में उचित मार्ग को चुनना सीख जाओगी, यहां तक कि जब असाधारण परिस्थितियों का सामना भी करना पड़े। मनुष्य यंत्रवत् प्राणी नहीं है और इसलिए केवल निर्धारित नियमों एवं कड़े नैतिक उपदेशों के अनुसरण द्वारा सदैव बुद्धिमानी से युक्त जीवन नहीं बिता सकता। विविध प्रकार की दैनिक समस्याओं एवं घटनाओं से हमें अच्छे निर्णय लेने की योग्यता को विकसित करने का अवसर प्राप्त होता है।’