अर्थव्यवस्था की फिक्र

यूं तो कोविड संकट से पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट का रुझान देखा जा रहा था, लेकिन अप्रत्याशित कोरोना संक्रमण ने उसे बड़ी चोट दी है। वित्तीय वर्ष 2020 में विकास दर माइनस 7.3 रही है। यह अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर में माइनस तेईस प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी, जो बाकी की तीन तिमाहियों में संभली है।

चौथी तिमाही में विकास दर का धनात्मक होना अच्छा संकेत कहा जा सकता है। दरअसल, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही थी, दूसरी लहर की भयावहता ने देश की आर्थिकी को बड़ी चोट दी है। इस बार की लहर का खासा असर ग्रामीण इलाकों में देखा गया।

जब मांग घटी तो अर्थव्यवस्था का प्रभावित होना लाजिमी था। यही वजह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 2022 तक तेजी से उभरने के जो आकलन किये जा रहे थे, दूसरी लहर ने उन पर पानी फेर दिया है।

जाहिरा सी बात थी कि कोरोना संकट के चलते अनिश्चय के बीच लोगों ने अपने खर्चों में कटौती की है। यही वजह है कि उपभोक्ता उत्पादों की खरीद में गिरावट आई है। घरेलू उपयोग के उत्पादों मसलन कारों, मोबाइल आदि की खरीद में गिरावट आई है और पेट्रोल की खपत भी घटी है, जिसका प्रभाव यह हुआ कि देश में रोजगार के अवसरों में संकुचन हुआ।

यही वजह है कि आकलन लगाया गया है कि देश में दूसरी लहर के दौरान एक करोड़ रोजगार खत्म हुए हैं और बेरोजगारी की दर में तेजी से वृद्धि हुई है। बताया जा रहा है कि इस दौरान 97 फीसदी लोगों की आय में गिरावट आई है।

निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था को महामारी से पूर्व की अवस्था में लौटने में कुछ वक्त लगेगा। बहरहाल, यह नहीं भुलाया जा सकता कि देश की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2016-17 से ही गिरावट का ट्रेंड दिखने लगा था, जो देश में मंदी की आहट का संकेत भी था।

बहरहाल, महामारी के संकट में देश के करोड़ों लोग फिर से गरीबी की दलदल में धंस गये हैं। कोरोना संकट के पहले दौर में सरकार ने कुछ बड़े राहत पैकेज दिये थे। महामारी के दौरान सरकार के आय के स्रोतों का भी संकुचन हुआ है।

लिहाजा सरकारी खजाने की स्थिति भी खास उत्साहजनक नहीं है। सरकार को कुछ मौद्रिक उपाय तो करने ही होंगे, जो लोगों के हाथ में नकदी बढ़ाएं, ताकि खर्च बढ़ने से उपभोग को बढ़ावा मिल सके। इससे उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और जीडीपी की स्थिति में भी सुधार होगा। बहरहाल, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हालिया आर्थिक आंकड़े उस संकट काल के हैं, जिसमें पूरी दुनिया कराह रही है।

फिर भी सरकार को राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है। वह भी ऐसे वक्त में जब दूसरी लहर में संक्रमण दर में तो गिरावट दर्ज की जा रही है, लेकिन अभी तीसरी लहर की आशंका भी बलवती हो रही है।

हमारे लिये यह राहत की बात होनी चाहिए कि खेती के प्राणवायु मानसून ने देश में दस्तक दे दी है और उसके सामान्य होने की बात कही जा रही है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना महामारी के दौरान केवल कृषि क्षेत्र ही वह सेक्टर था, जिसने चारों तिमाही के दौरान साढ़े तीन से साढ़े चार फीसदी की विकास दर बनाये रखी।

बाकी सेवा क्षेत्र, पर्यटन, विनिर्माण व उद्योगों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई थी। कह सकते हैं कि कृषि सेक्टर ने देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को संबल दिया। इसके बूते ही देश के करोड़ों गरीबों को मुफ्त अनाज संकट के इस दौर में उपलब्ध कराया जा सका।

ऐसे में सरकार की कोशिश होनी चाहिए कि आय के नये स्रोत तलाशे और आम आदमी के हाथ में ज्यादा नकदी पहुंचाने की व्यवस्था करे ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिल सके। यहां यह भी जरूरी है कि देश में जल्द से जल्द टीकाकरण कार्यक्रम को पूरा किया जाये ताकि स्थिति सामान्य होने से अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों को गति मिल सके।

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