हास्य बोध

उन दिनों हजारी प्रसाद द्विवेदी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आचार्य थे। एक बार मेरठ में उनके सम्मान में कार्यक्रम हुआ। मेरठ कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष ने उनके सम्मान में प्रशंसात्मक परिचय देने के बाद कहा, ‘आचार्य द्विवेदी जी से अनुरोध है कि विद्यार्थियों को दो शब्द कहें।

’ द्विवेदी जी ने कहा, ‘विभागाध्यक्ष जी ने अनुरोध किया है, दो शब्द कहने का, तो यह ऐसा ही है कि एक जगह का गडरिया, दूसरी जगह जाए और उससे कोई कहे, क्यों भाई, क्या तुम मेरी भेड़ें चरा दोगे?

और वह गडरिया उत्तर में कहे, हां, जरूर, मेरा और काम ही क्या है? तो प्रिय विद्यार्थियों, अध्यापक होने के नाते मैं भी यही करता हूं और मेरा काम ही क्या है? काशी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को पढ़ाता हूं, आज मेरठ कॉलेज के विद्यार्थियों को ही सही।’

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