इस बार भी गरीबों को पड़े दो जून की रोटी के लाले
बैण्ड.बाजा, डीजे, कैटरर्स को दो जून की रोटी मयस्सर नहीं
लखनऊ। अच्छे दिनों की आस में इस बार फिर दो जून की तारीख आ गयी परन्तु लाखों लोगों के आगे दो जून की रोटी का संकट अभी भी बरकरार है। काम.धंधें बन्द होने से गरीब तबके के सामने परिवार चलाने की गंभीर समस्या खड़ी हुयी है। सरकार द्वारा प्राप्त एक हजार की सम्मान राशि उनके लिये उॅंट के मुंह में जीरा के समान है।
शादी विवाह बंद होने से और कोविड प्रोटोकाल के चलते कैटरर्स का धंधा बंद है तो उससे ही जुड़े वेटरए बैण्ड.बाजा वालेए डीजे वालेए झूला गुब्बारे वालो के साथ स्टेज की सजावट वाले व अन्य छोटे.छोटे काम करने वाले बुरी तरह से बरबाद हो चुके है।
इनको दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं हो पा रही है। दुकानें बंद होने से रिक्शा ट्राली वालेए मजदूरी करके बोझा ढोने वालो पर दो जून की रोटी का संकट आ खडा हुआ है।
शराब की दुकाने भले ही खुल गयी हो परन्तु इनके आस.पास खुलने वाली पानए बीड़ी सिगरेट फुटकर खाने.पीने की दुकाने बंद होने से उनके भी परिवारों के आगे दो जून की रोटी का गंभीर संकट है।
इनमें से अधिकांश लोगों ने मजबूरी में पेट पालने के लिये भले ही फल.सब्जी आदि के ठेले लगा लिये हो तो उस पर कोरोना प्रोटोकाल के नाम पर पुलिसिया सितम उनको जीने नहीं दे रहा है।
साप्ताहिक बाजारों में सड़कों पर अपनी दुकाने लगा कर अपने परिवार का पेट पालने वाले आज दो जून की रोटी को तरस रहे है। अमीनाबाद में एक माह से अधिक सड़कों के किनारे तिरपाल रस्सियों में लिपटे खडे़ ठेले उनका दर्द बयां करने के लिये काफी है कि वे भी दो जून की रोटी का इंतजाम अपने व अपने परिवार के लिये नहीं कर पा रहे है।
वास्तव में लाकडाउन में गरीब तबके का सबसे बुरा हाल है जो अपने परिवार के लिये दो जून की रोटी के लिये तरस रहा है। उस पर लाकडाउन की आभासी महंगाई उसकी कमर तोड़ रही है।