नारदा केस: सुप्रीम कोर्ट के सवालों में उलझ कर रह गई CBI , वापस ली याचिका

नयी दिल्ली: टीएमसी के नेताओं की नजरबंदी के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में सीबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इतने सवाल उठाए कि वह उनमें उलझ गई और अंतत: याचिका वापस लेने में ही भलाई समझी। हालांकि, याचिका वापस लेने की सलाह भी सीबीआई को कोर्ट से ही मिली थी। कोर्ट के इस सवाल से सीबीआई बुरी तरह हिल गई कि उसने उन अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है, जिनके खिलाफ चार्जशीट दायर हो चुकी है, लेकिन जिनके खिलाफ चार्जशीट दायर नहीं हुई है, वे बाहर हैं। कोर्ट का इशारा हाल ही में भाजपा में शामिल टीएमसी नेताओं की तरफ था। कोर्ट ने कहा कि हमारे हिसाब से ये अभियुक्त गवाहों को प्रभावित करने की ज्यादा सुदृढ़ स्थिति में हैं।

जस्टिस विनीत शरण और बीआर गवई की पीठ ने कहा कि आरोपी नजरबंदी के बावजूद सीबीआई की निगरानी में हैं। पीठ ने पूछा कि वास्तव में सीबीआई की शिकायत क्या है। हम जानना चाहते हैं कि आप हमसे क्या चाहते हैं। जस्टिस गवई ने 17 मई को कलकत्ता उच्च न्यायालय की बैठक के संदर्भ में कहा कि हमने देखा है कि स्वतंत्रता से निपटाने के लिए विशेष पीठों को सौंपा गया है। लेकिन, यह पहली बार है जब एक विशेष पीठ को मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता वापस लेने के लिए सौंपा गया है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि वह राज्य के मुख्यमंत्री या कानून मंत्री का समर्थन नहीं कर रही है और केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे पर बात कर रही है। बेहतर होगा आप याचिका वापस लें। क्योंकि जब हम प्रतिवादियों (जिनमें राज्य सरकार भी शामिल है) को सुनेंगे तो हमें भी नहीं पता वे क्या क्या बोलेंगे।

बेंच ने सुझाव दिया कि सीबीआई सुप्रीम कोर्ट से मामले को वापस ले और कलकत्ता उच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष मुद्दों को उठाए। सॉलिसिटर जनरल ने इसके बाद निर्देश लेने के लिए कुछ मिनट मांगे। जब  मामले को फिर से लिया गया तो सॉलिसिटर जनरल ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। पीठ ने सीबीआई को कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दों को उठाने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।

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