सेवा का मंदिर
महान सिद्ध संत हरिबाबा ने बदायूं जनपद के गांवों को गंगा की बाढ़ से बचाने के लिए गांव के पास श्रमदान से बांध बनवाने का संकल्प लिया। वह स्वयं ग्रामीणों के साथ ‘हरि बोल’ ‘हरि बोल’ के संकीर्तन के बीच टोकरी में मिट्टी भरते और बांध पर डालते थे।
प्रतिदिन हजारों ग्रामीण इस अनूठे अभियान में जुट गए। एक दिन एक पंजाबी धनिक व्यक्ति बाबा के पास पहुंचा। उसने कहा, ‘बाबा, मैं लुधियाना के अपने गांव में मंदिर बनवाना चाहता हूं।
मंदिर की पहली ईंट आपके पवित्र हाथों से रखवाना चाहता हूं। इसीलिए यहां आया हूं।’ बाबा ने कहा, ‘आज हमारे साथ बांध के निर्माण के लिए श्रमदान करो। और बातें कल करेंगे।
’ पंजाबी धनिक ने जब बाबा को स्वयं मिट्टी खोदकर उसे बांध पर डालते देखा, तो वह भी ‘हरि बोल’ के उद्घोष के साथ श्रमदान में लग गया। दूसरे दिन वह बोला, ‘बाबा, मैंने मंदिर बनाने के लिए एकत्र धन को इस बांध में लगाने का निर्णय लिया है।
असंख्य लोगों की पीड़ा हरने वाला यह बांध भी तो एक मंदिर ही है।’ हरिबाबा की मौन सद्प्रेरणा ने उसके अंतःकरण को ज्योतिर्मय बना डाला था उसने न केवल धन दिया, अपितु स्वयं कई दिनों तक वहां रहकर श्रमदान करता रहा।