ताउते

ऐसे वक्त में जब देश पहले ही कोरोना महामारी की दूसरी लहर से हलकान है, भीषण चक्रवाती तूफान ताउते का आना कोढ़ में खाज सरीखा कष्ट दे गया।

महाराष्ट्र, केरल व कर्नाटक जैसे समुद्र तटीय राज्यों में कहर बरपाता तूफान गुजरात में तांडव मचाने पहुंचा। मौसम विज्ञान की उन्नति के चलते तूफान की सूचना समय रहते मिलने और पिछली तबाहियों से सबक लेते हुए शासन-प्रशासन के स्तर पर जो सुरक्षा के उपाय किये गये, उससे किसी हद तक जन-धन की हानि को टाला जा सका है।

दरअसल, अतीत के अनुभवों से सबक लेते हुए हमने विकसित देशों की तरह चक्रवातों से जूझने का कौशल किसी हद तक हासिल भी किया है। मौसम विभाग का सटीक पूर्वानुमान इसमें सहायक बना है।

इसमें राष्ट्रीय आपदा मोचन बल तथा राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल की मदद से तटीय आबादी को सतर्क करना मददगार साबित हुआ है। साथ ही खतरे की जद में आने वाले इलाकों के लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने से जन-धन की हानि को कम किया जा सका है।

गुजरात में निचले तटीय क्षेत्रों से करीब डेढ़ लाख से अधिक लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया था। इतना ही नहीं, काफी संख्या में कोविड-19 के मरीजों को भी सुरक्षा कारणों से अन्य स्थानों पर स्थानांतरित किया गया।

ये वे मरीज थे जो वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। बाम्बे हाई के निकट तेल क्षेत्र में एक जहाज के डूबने और नौसेना के युद्धपोतों के प्रयास से बड़ी संख्या में लोगों को तो बचा लिया गया लेकिन कुछ इतने भाग्यवान नहीं थे।

बहरहाल, अरब सागर से उठा यह चक्रवाती तूफान दक्षिण-पश्चिमी राज्यों में निजी व सार्वजनिक संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचा गया। सड़कों पर पेड़ गिरने, बिजली की लाइनों को नुकसान पहुंचाने तथा कच्चे मकानों को ध्वस्त करने के साथ ही कुछ जिंदगियों को भी तूफान लील गया।

कई इलाकों में तेज बारिश और जलभराव से सामान्य जीवन बाधित हुआ है। बहरहाल, कुल कितनी जन-धन की हानि हुई है, इसका आकलन करने में जरूर कुछ वक्त लगेगा।

बहरहाल, इस मुश्किल वक्त में इस तूफान का आना राज्यों की मुसीबतों को कई गुना करने जैसा रहा। जाहिरा तौर पर कोरोना के खिलाफ जारी राज्यों की मुहिम पर भी इसका प्रभाव बेहद प्रतिकूल पड़ा है।

महाराष्ट्र व गुजरात पहले ही सर्वाधिक कोरोना संक्रमण प्रभावित राज्यों में शुमार हैं। वे अपनी पूरी ऊर्जा व संसाधन कोरोना संकट से जूझने में लगा रहे थे, ऊपर से यह नया संकट खड़ा हो गया।

इस भीषण चक्रवाती तूफान की वजह से कई इलाकों में टीकाकरण कार्यक्रम को भी रोका गया। जाहिर सी बात है कि यह व्यवधान कोरोना संक्रमण के खिलाफ हमारी मुहिम को प्रभावित करेगा। लेकिन ये चक्रवाती तूफान हमें कई सबक भी देकर गया है।

यह भी कि हम महसूस करें कि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन का संकट हमारे जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा। भारत ही नहीं, अमेरिका समेत कई समुद्र तटीय देश इस जलवायु परिवर्तन के संकट को महसूस कर रहे हैं। निस्संदेह ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से चक्रवाती तूफानों की आवृत्ति में लगातार वृद्धि हुई है।

दरअसल, यह स्थिति समुद्रों की सतह के तापमान में वृद्धि होने से पैदा हो रही है जो कालांतर समुद्री तूफानों की संख्या में वृद्धि करता है। हमें आने वाले समय में ऐसे तूफानों को अपनी नियति मानकर इनसे बचाव के लिये स्थायी तंत्र विकसित करना होगा।

साथ ही आधुनिक तकनीक व सूचना माध्यमों से निगरानी तंत्र को समृद्ध करने की जरूरत है। वर्ष 1999 में ओडिशा में आये तूफान से हुई भारी तबाही के बाद इस राज्य ने ऐसा तंत्र विकसित किया है, जिससे जन-धन की हानि को कम किया जा सके।

देश के अन्य समुद्र तटीय राज्यों को ओडिशा से सबक लेना चाहिए और अपना कारगर तंत्र विकसित करना चाहिए। यह जानते हुए कि जलवायु परिवर्तन के वैश्विक संकट में लगातार वृद्धि हो रही है, संरचनात्मक विकास का ढांचा इसी के अनुरूप विकसित करने की जरूरत है। तभी जन-धन की हानि को कम किया जा सकेगा।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker