देशप्रेम
अंग्रेजों के दमन चक्र के प्रति जनता में बहुत आक्रोश था। गूंगी बहरी अंग्रेजी सरकार तक जनता की आवाज पहुंचाने के लिए क्रांतिकारियों ने असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई।
हिन्दोस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की बैठक में असेंबली में बम फेंकने की जिम्मेदारी भगत सिंह को नहीं दी गई। सुखदेव जानते थे कि बम फेंकने के बाद गिरफ्तारी देकर क्रांतिकारियों के लक्ष्य को भगत सिंह अच्छी तरह से स्पष्ट कर सकते हैं। तीन दिन बाद जब सुखदेव को इस फैसले का पता चला तो वे बहुत गुस्सा हुए।
अपने सबसे प्यारे दोस्त भगत सिंह को भी उसने काफी भला-बुरा कहा। आखिर फिर से एसोसिएशन की बैठक हुई और बम फेंकने की जिम्मेदारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को दी गई। देश के व्यापक हित में यह फैसला तो हो गया। लेकिन इसका सीधा मतलब अपने जान से प्यारे दोस्त भगत सिंह को मौत के मुंह धकेलना था।
इस फैसले के बाद सुखदेव फूट-फूट कर रोया। अगले दिन उसकी आंखें सूजी हुई थीं। ऐसा था सुखदेव का सच्चा प्रेम। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु ने देश की आज़ादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया।