जलवायु की फिक्र

ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी के कहर से जूझ रही है जलवायु परिवर्तन पर दुनिया के बड़े चालीस देशों का सम्मेलन आयोजित होना विषय की गंभीरता को ही दर्शाता है।

अमेरिका की पहल पर हाल ही में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में अमेरिका, ब्रिटेन, चीन जापान व भारत समेत बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों ने भाग लिया। दरअसल, अब तक पूरी दुनिया में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करने वाले मुल्क बड़ी-बड़ी बातें तो करते थे, लेकिन अमल के मुद्दे पर किनारा कर जाते थे।

लेकिन इस मुश्किल वक्त में आयोजित सम्मेलन को देखकर लगा कि वे लगातार गहराते जलवायु परिवर्तन संकट को वाकई दूर करने को तैयार नजर आते हैं। हाल के दिनों में अमेरिका व अन्य देशों के मौसम के व्यवहार में जो अप्रत्याशित परिवर्तन देखा गया, उसे मानवता के लिये खतरे की घंटी के रूप में देखा जा रहा है।

वहीं जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर अमेरिका का लौटना जो बाइडेन सरकार की प्रतिबद्धता को ही दर्शाता है। अन्यथा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु परिवर्तन पहल से अमेरिकी को अलग कर लिया था। इस सम्मेलन में बाइडेन ने घोषणा की कि चालू दशक में अमेरिका कोयले और पेट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल लगभग आधा कर देगा।

साथ ही उनके अभियान में वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा भी शामिल होगी, जिसमें भारत के सहयोग की अहम भूमिका होगी। साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने का प्रयास करना होगा। इस पहल को ग्रीन हाउस गैसों को कम करने की दिशा में अमेरिका की गंभीर पहल के रूप में देखा जा रहा है।

उत्सर्जन में कमी लाने के मकसद से ही विश्व के बड़े नेताओं को एकजुट करने के लिये ही इस जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन किया भी गया था। दशक के अंत तक जीवाश्म ईंधन के उपयोग में अमेरिका का 52 फीसदी कमी लाना इस प्रतिबद्धता को जाहिर करता है।

जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अपनी विकास की चुनौतियों के बावजूद स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा प्रभाविता और जैव विविधता को लेकर हमने कई साहसिक कदम उठाये हैं। उन्होंने कहा कि महामारी के बीच सम्मेलन का आयोजन बताता है जलवायु परिवर्तन का संकट एक बड़ी चुनौती है।

वहीं सम्मेलन में जापान ने 2030 तक उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य मौजूदा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 46 प्रतिशत करने का निर्णय किया है। जापानी प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने जापान में 2050 तक शून्य कार्बन स्तर का लक्ष्य तय किया है। वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी सम्मेलन में 2030 तक उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कटौती तथा 2060 तक नगण्य कार्बन स्तर की प्रतिबद्धता दोहरायी।

दरअसल, भारत समेत सबसे ज्यादा जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाले देश अमेरिका और अन्य विकसित देशों से कोयला संयंत्रों का विकल्प उपलब्ध कराने के लिये अरबों डॉलर की मदद को पूरा करने के लिये दबाव बनाते रहे हैं।

निस्संदेह इन प्रयासों से पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने की उम्मीदें बढ़ी हैं। दरअसल, अमेरिका में सत्ता परिवर्तन पर जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद ही लगने लगा था कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पर नियंत्रण के दिशा में सार्थक पहल होगी।

इसकी वजह यह थी कि राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद उन्होंने 20 जनवरी को पेरिस जलवायु समझौते में अमेरिका की वापसी की घोषणा कर दी थी।

यह भारत के लिये भी सुखद है कि बाइडेन ने कहा है कि वे भारत के साथ द्विपक्षीय सहयोग के लिये जलवायु साझेदारी को मुख्य आधार बनाना चाहते हैं, जिसका आधार अमेरिका का अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य 450 गीगावाट हासिल करना है।

निश्चित रूप से दुनिया को बचाने के लिये इन घोषणाओं को साकार करने की जरूरत है। अन्यथा दुनिया गर्म हवाओं की चपेट आ जायेगी और मनुष्य का जीवन कष्टप्रद हो जायेगा। यही वक्त है दुनिया के विकसित और विकासशील देश  एकजुट होकर मानवता का भविष्य सुखद बनाने का प्रयास करें।

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