ध्यान से भगवान

गुरु शिवानन्द की आध्यात्मिक कक्षा चल रही थी। एक जिज्ञासु शिष्य ने पूछा, ‘गुरुवर, ईश्वर से साक्षात्कार कैसे हो सकता है‍?’ गुरु जी बोले, ‘सभी शिष्य आज रात को सोने से पहले पूरे मन से एक सौ आठ बार ईश्वर का ध्यान करना और अपनी अनुभूतियों को कल मुझे बताना।’ अगले दिन गुरुजी द्वारा रात्रि का अनुभव पूछने पर कौस्तुभ के अलावा सभी शिष्यों ने बताया, ‘हमने पूरे मनोयोग से एक सौ आठ बार ईश्वर का ध्यान किया है।’ प्रसन्न होकर शिवानन्द जी ने कौस्तुभ से पूछा, ‘क्यों पुत्र, क्या तुमने अपना ध्यान पूरा नहीं किया।’ कौस्तुभ बोला, ‘गुरु जी, ऐसा नहीं है। मैं गिनती में ध्यान लगाता तो ईश्वर को भूल जाता था और ईश्वर को ध्यान में रखता तो गिनती का क्रम टूट जाता था। अतः पूरी रात न ईश्वर को ही ढंग से याद कर पाया और न ही एक सौ आठ बार ईश्वर का नाम पूरा हो सका।’ इस पर शिवानन्द जी ने सभी शिष्यों को समझाया, ‘पुत्रों, ईश्वर से साक्षात्कार तभी सम्भव है जब ईश्वर का ध्यान पूर्ण चित्त और एकाग्रता के साथ किया जाए, अन्यथा ऐसा स्मरण मात्र दिखावा ही है।’

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