वक्त की रणनीति
ऐसे वक्त में जब देश कोरोना संक्रमण खत्म होने को लेकर निश्चिंत होने लगा था, संक्रमण की नई चुनौती सामने खड़ी हो गई। लगने लगा कि आने वाले वर्षों में यही न्यू नॉर्मल होने जा रहा है और बचाव के लिए चौकसी लगातार करनी ही होगी।
यह सुखद ही है कि मार्च महीने की शुरुआत आम लोगों के टीकाकरण अभियान से हो रही है। यूं तो देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत 16 जनवरी से हो चुकी थी, लेकिन जैसा कि अपेक्षित था, कोरोना योद्धाओं को सबसे पहले टीका लगा।
शुरुआत में तो टीकाकरण तेजी से चला, मगर बाद में यह अभियान अपेक्षित गति नहीं पकड़ पाया। सभी स्वास्थ्यकर्मियों को टीके की दोनों डोज देने का लक्ष्य फिलहाल पूरा नहीं हो पाया है।
शायद यही वजह है कि एक मार्च से साठ साल से अधिक और 45 से 59 वर्ष के उन लोगों को टीकाकरण अभियान में शामिल कर लिया गया, जो गंभीर रोगों व सर्जरी से गुजरे हैं। देशकाल परिस्थिति के हिसाब से बदली रणनीति वक्त की जरूरत भी है। शायद तभी जुलाई तक तीस करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।
पहली मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वैक्सीन लगवाकर कई संदेश देने का प्रयास किया है। राजनीतिक रूप से जो कहा जा रहा था कि स्वदेशी वैक्सीन पहले शीर्ष राजनेताओं को लगानी चाहिए, उसका भी उन्होंने जवाब दिया। वहीं कोरोना योद्धाओं, खासकर चिकित्सा बिरादरी से जुड़े लोगों में स्वदेशी वैक्सीन को लेकर जो दुविधाएं थी, प्रधानमंत्री की पहल के बाद उसे दूर करने में मदद मिलेगी।
सामान्य-सी बात है कि किसी भी वैक्सीन को लगाने के बाद कुछ प्रभाव शरीर में नजर आते हैं। ऐसा यदि कोरोना वैक्सीन को लेकर होता तो कोई असामान्य बात नहीं है। निस्संदेह प्रधानमंत्री की पहल से देश के लोगों में वैक्सीन लगाने को लेकर उत्साह बढ़ेगा। इसी बीच देश के कई राज्यों में कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी आने से चिंताएं जरूर बढ़ी हैं।
निस्संदेह, महामारी की नई लहर की आशंकाओं के बीच वैक्सीनेशन की जरूरत और बढ़ जाती है। अन्यथा जनजीवन सामान्य होने में लंबा वक्त लग सकता है। देश लॉकडाउन की स्थितियों से अब आगे निकल चुका है।
ऐसे में जहां लोगों को फिर से पुराने सुरक्षा उपाय अपनाने की जरूरत है तो वहीं सरकार को भी टीकाकरण अभियान को लेकर रणनीति में बदलाव लाने की जरूरत है। सरकार ने नये वर्ग के लिए टीकाकरण जल्दी शुरू करके एक संवेदनशील आबादी को सुरक्षा कवच देने का सार्थक प्रयास किया है।
इससे एक ओर जहां संवेदनशील आबादी सुरक्षित होगी, वहीं कोरोना संक्रमण की कड़ी को तोड़ने में भी मदद मिलेगी। बदलाव की रणनीति के तहत सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीका लगाने के साथ ही निजी अस्पतालों में निर्धारित राशि देकर टीकाकरण की पहल भी सार्थक है। इससे जहां टीकाकरण में गति आएगी, वहीं उन लोगों को सुविधा हो सकेगी जो लंबी कतारों से बचना चाहते हैं।
वहीं सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण अभियान पर दबाव कम होगा, साथ ही सरकार के लिए मुफ्त टीका उपलब्ध कराने का खर्च भी घटेगा। इसके अलावा कम समय में अधिक लोगों को टीका लगाया जा सकेगा। जो लोग सक्षम हैं उन्हें टीके का मूल्य चुकाना चाहिए। निजी अस्पतालों का भी दायित्व बनता है कि इस संकट की घड़ी में टीकाकरण में पारदर्शिता लायें।
सरकार द्वारा निजी अस्पतालों में टीके की कीमत निर्धारित किये जाने से मनमाना दाम वसूले जाने की आशंकाएं भी दूर होंगी। देश-दुनिया में जिस तरह कोरोना संक्रमण रह-रह कर सिर उठा रहा है और नये-नये स्ट्रेन सामने आ रहे हैं, उसे देखते हुए टीकाकरण ही अंतिम उपाय हो सकता है।
बहरहाल, एक सवाल जरूर आम आदमी को मथ रहा है कि वैक्सीन से इम्यूनिटी कितने समय तक हासिल होगी। हम इस मायने में खुशकिस्मत हैं कि स्वदेश में निर्मित वैक्सीन हमें सहज उपलब्ध है और दुनिया के तमाम देश उम्मीदों से हमारी ओर देख रहे हैं।