अमन की राह

यह सुखद ही है कि भारत व पाकिस्तान के बीच सीमा पर सख्ती से संघर्ष विराम लागू करने पर न केवल सहमति ही बनी बल्कि लागू भी हो गई। साथ ही यह भी कि पिछले समझौतों को भी गंभीरता से लेकर पालन किया जायेगा।

दरअसल, दोनों सेनाओं के सैन्य अभियानों के महानिदेशक यानी डीजीएमओ के मध्य एलओसी पर लगातार जारी गोलाबारी की बड़ी घटनाओं के बाद यह बातचीत बुधवार को हुई और बृहस्पतिवार से यह संघर्ष विराम जमीनी हकीकत भी बन गया। यह सहमति केवल एलओसी पर ही नहीं बल्कि अन्य सेक्टरों पर भी लागू होगी।

इसके अंतर्गत चौबीस व पच्चीस फरवरी की मध्यरात्रि से ही गोलाबारी रोकने का फैसला हुआ। निस्संदेह सीमा पर लगातार जारी संघर्ष विराम न केवल सेना के स्तर पर बल्कि निकटवर्ती ग्रामीणों के स्तर पर भी घातक साबित हो रहा था।

अक्सर जवानों के शहीद होने की खबरें आ रही थीं। साथ ही एलओसी के निकट के गांव के लोग भय व असुरक्षा में जी रहे थे। कई बार ग्रामीणों को विस्थापित होना पड़ रहा था। वे अपने खेतों में फसलों की देखभाल तक नहीं कर पा रहे थे।

सबसे ज्यादा स्कूली बच्चों को सहना पड़ रहा था, जो स्कूल जाने में इसलिए असमर्थ थे कि न जाने कब गोलाबारी शुरू हो जाये। इस सहमति के बाद संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों ही पक्ष नियंत्रण रेखा और दूसरे सेक्टरों में सभी समझौतों, परस्पर समझ और संघर्ष विराम का सख्ती से पालन करेंगे।

इससे पहले हॉटलाइन के जरिये दोनों डीजीएमओ ने नियंत्रण रेखा की स्थितियों की समीक्षा की और एक-दूसरे के आंतरिक मुद्दों और चिंताओं को समझते हुए सहमत हुए कि कैसे शांति भंग करने वाले कारकों को टाला जा सकता है, जिससे क्षेत्र में शांति स्थापित करने में मदद मिल सके।

वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना ने साफ किया है कि वह जम्मू-कश्मीर के आंतरिक हिस्से में आतंकवादियों से निपटने के लिए तथा सीमा पर घुसपैठ के खिलाफ सख्त कदम उठाती रहेगी।

वहीं सैन्य अभियानों के महानिदेशकों के बीच हुई बातचीत में इस बात पर भी सहमति बनी कि उन तमाम पुराने समझौतों को भी फिर से क्रियान्वित किया जायेगा जो समय-समय पर दोनों देशों के बीच किये गये थे।

निस्संदेह जब एलओसी पर स्थिति बेहद संवेदनशील बनी हुई थी और दोनों ओर की सेनाओं को लगातार क्षति उठानी पड़ रही थी, यह समझौता सुकून की बयार की तरह ही है। इतना ही नहीं, दोनों डीजीएमओ एक-दूसरे के जरूरी मुद्दों और चिंताओं को स्वीकारने पर सहमत हुए कि हिंसा भड़काने और शांति भंग करने के कारकों से कैसे बचा जाये।

साथ ही यह भी कि समय-समय पर गलतफहमी और अनदेखे हालातों के निस्तारण के लिए हॉटलाइन के जरिये समाधान निकाला जायेगा। अभी कहना जल्दबाजी होगी कि पाक का यह हृदय परिवर्तन परिस्थितियों के अनुरूप है या भविष्य की रणनीति बनाने के लिए वह कुछ समय ले रहा है।

या फिर किसी अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते यह कदम उठा रहा है। बहरहाल, हाल में पूर्वी लद्दाख से चीनी सेना की वापसी के बाद पाक का एलओसी पर संघर्ष विराम के लिए सहमत होना भारतीय नजरिये से सुखद ही है। दोनों सीमाओं पर तनाव का मुकाबला करना भारतीय सेना के लिए असंभव नहीं तो कठिन जरूर है।

सेना पर आने वाला कोई दबाव कालांतर में पूरे देश पर पड़ता है। साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है। देश में कोरोना संकट के बीच आर्थिक विकास को पटरी पर लाने के लिए सीमाओं पर शांति बेहद जरूरी है। इसके बावजूद कहना कठिन है कि पाक अपनी बात पर कब तक कायम रहता है।

वर्ष 2003 में भारत और पाक के बीज सीजफायर समझौता हुआ था, जिसमें सीमा पर एक-दूसरे की सेनाओं पर गोलाबारी न करने का संकल्प दोहराया गया था। लेकिन तीन साल तक स्थिति सामान्य रहने के बाद वर्ष  2006 में पाक ने फिर एलओसी पर गोलाबारी शुरू कर दी। बल्कि बीते साल तो संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं में रिकॉर्ड तेजी आई है।

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