भूख और धर्म
संविधान ने प्रत्येक मनुष्य को जीने का अधिकार प्रदान किया है। इस संवैधानिक अधिकार के अनुकूल कल्याणकारी राज्य में सबसे पहले सभी नागरिकों को दो वक्त का भोजन सुलभ होना चाहिए। जीने के लिए सबसे जरूरी है कि आदमी का पेट भरा रहे। यह हर जीव.जंतु के शरीर की सबसे बड़ी मांग है। इसके बिना जीवन नहीं जीया जा सकता है।
बुद्ध के शिष्य एक व्यक्ति को लेकर आए और उसे धर्म.तत्व समझाने की प्रार्थना कीए क्योंकि उनके उपदेशों को वह समझ नहीं पा रहा था। बुद्ध ने कहाए ष्पहले इसे खाने को दो। यह भूखा है। पेट भर जाने के बाद समझेगा धर्म। जीवन के लिए सबसे आवश्यक है सांसए जो प्रकृति से मिलती है। फिर है पानीए जो प्रकृति की ही देन है। तीसरी आवश्यकता है आहार। यह भी प्रकृति ने दिया है।
मगर जिस जमीन पर अनाज पैदा होता हैए आदमी ने व्यवस्था के नाम पर उस पर स्वामित्व की विभाजक रेखा खींच दी। उसकी उपज को भी संपत्ति और क्रय.विक्रय की वस्तु बनाकर उस पर व्यक्तिगत मिल्कियत की मुहर लगा दी।
मनुष्य की व्यवस्था ने प्रकृति की हर चीज का बंटवारा किया और उसका मालिक होने का हक जता दिया। धीमे.धीमे आवश्यकता गौण व मालिकाना पकड़ मजबूत हो गई।
इससे एक तरफ समाज में अभावए तो दूसरी तरफ अति.भाव की विषम स्थिति बन गई। रोटी के संसार को दो टुकड़ों में बांट दिया गया। एक टुकड़ा रोटी को सर्वोच्च मूल्य मानकर जीवन के सारे परम सत्यों को नकार रहा है तो दूसरा उनकी दुहाई देकर रोटी के सर्वजन्य अधिकार को नकार रहा है। महावीर कहते हैंए जिजीविषा सार्वभौम सत्ता है।
जीने की इच्छा सबकी है। अतरू जीवन का अधिकार भी सबका है। उन्होंने कहाए अच्छा हो कि संयम से हम खुद को नियंत्रित करेंए नहीं तो दूसरे हमें बंधनए बलात नियंत्रणए वध और रक्तपात द्वारा नियंत्रित कर देंगे।
ईसा मसीह भक्तों को सलाह देते थेए ष्केवल रोटी के बूते जिंदगी नहीं चलती। किसी ने टिप्पणी कीए ष्हमें तो वह भी नसीब नहीं होती।ष् कहते है यह सुन कर ईशु की आंखें भर गयी। दो जून खाए बगैर इंसान का कहां गुजाराए प्रभु का नाम लेना हो तब भी।
किसी ने कहा है कि भूखे पेट भजन नहीं होता प्रभु। लाजिमी हैए भूख की तड़प और रोटी नसीब नहीं होने की पीड़ा सभी देशों में मुखर हैं। बेटी ब्याहते वक्त देखा जाता रहा है कि होने वाले दामाद का खेतए नौकरी या धंधा हो ताकि वह बेटी को खिला सके। एक न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था में सबसे पहले सभी नागरिकों को दो वक्त भोजन सुलभ होना चाहिए।
मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे ज्यादा युद्ध धर्म के नाम पर लड़े गये हैं। इन युद्धों के पीछे धर्म की अज्ञानता प्रमुख कारण रही है। प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से ही यह संकल्प दिलाना चाहिए कि ष्एक दिन दुनिया को एक करूंगाए धरती स्वर्ग बनाऊंगा और विश्व शांति का सपना एक दिन सच करके दिखलाऊंगा।
साथ ही बालक को सीख दी जानी चाहिए कि ईश्वर एक है धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। सभी पवित्र पुस्तकों.गीता त्रिपटक बाइबिल कुरान गुरु ग्रंथ साहिबए किताबें.अकदस का ज्ञान क्रमशरू कृष्णए बुद्धए ईशुए मोहम्मदए नानक तथा बहाउल्लाह के माध्यम से युग.युग की आवश्यकतानुसार सम्पूर्ण मानव जाति के मार्गदर्शन के लिये एक ही परमात्मा ने भेजा है।
किसी भी पूजा स्थल में की गई प्रार्थना को सुनने वाला परमात्मा एक ही है इसलिए एक ही छत के नीचे अब सब धर्मों की प्रार्थना होनी चाहिए।