भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबरदस्त कूटनीतिक से चीन को घेरा
चीन चारों तरफ से घिर गया है और उसको घेरा है हिंदुस्तान ने, हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐसा चक्रव्यूह बनाया है, जिसमें से निकलना चीन के लिए मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन लगता है। क्योंकि ये घेराबंदी सिर्फ लद्दाख में सेना की टुकड़ी भेजने तक नहीं, बल्कि उससे कहीं ज्यादा आगे तक की है।
कोरोना वायरस को विश्व में फैलाने के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। चीन एक ऐसा देश है जिसकी दोस्ती किसी को नहीं दिखती लेकिन दुश्मनी साफ-साफ प्रकट हो जाती है।
वो हमेशा अपने खुराफातों की ऐसी चाल चलता है कि दूसरे देश उसमें फंसकर चकरघिन्नी बन जाएं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत ने तय कर लिया है कि वो चीन की किसी भी चाल को कामयाब नहीं होने देगा। प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसा चक्रव्यूह बनाया है जिसमें से निकलना चीन के लिए असंभव होगा।
उस चक्रव्यूह का सबसे बाहरी व्यूह है सामरिक। उसके अंदर का व्यूह है कूटनीतिक और फिर उसके अंदर का व्यूह है आर्थिकबी। तो एक-एक कर जान लीजिए कि कैसे चीन की विस्तारवादी सोच को लगाम कसने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बना रखा है एक जबर्दस्त रणनीतिक चक्रव्यूह। इसकी शुरुआत होती है रक्षा मामलों से. पूर्वी लद्दाख के तीन केंद्रों पर चीन ने घुसपैठ कर ली। अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ डट गया। उसने सोचा होगा कि भारत कोई पलटवार नहीं करेगा लेकिन हिंदुस्तान की सेना जा डटी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत के साथ बैठक करके तय कर लिया कि चीन जिस भाषा में बात समझता हो, उसे उसी भाषा में समझा दिया जाए। भारत के इस तेवर से चीन तिलमिलाया हुआ है। जिनपिंग ने अपने सैन्य अधिकारियों के साथ बैठक करके युद्ध के लिए तैयार रहने की बात की है।
युद्ध की तैयारी
चीन के राष्ट्रपति ने किसी देश का नाम नहीं लिया कि वो किससे युद्ध के लिए तैयारी कर रहे हैं. वैसे चीन का सबसे बड़ा कूटनीतिक युद्ध तो अमेरिका से चल रहा है जो कोरोना पर शुरू हुआ है।
लेकिन जब चीन की हरकतों पर भारत ने अपने तेवर कड़े किए तो अमेरिका को भी लग गया कि हालात बदल रहे हैं. ट्रंप ने ट्वीट किया कि हमने भारत और चीन दोनों को सूचित किया है कि उनके तीखे सीमा विवाद पर अमेरिका मध्यस्थता करने को तैयार है।
दरअसल, कोरोना के संक्रमण के दौरान जहां भारत ने अपना पूरा ध्यान इस महामारी से निपटने में लगाया है, वहीं चीन ने एलएसी पर भारतीय सीमा में करीब 5 हजार सैनिकों की तैनाती बहुत तेजी से कर दी. लेकिन भारत ने जल्द ही अपनी फौज की तैनाती कर दी. अब भारत की नाराजगी और अमेरिका के गुस्से के बीच चीन अलग थलग पड़ने लगा है. दुनिया के तमाम देश उससे किनारा कर रहे हैं, बावजूद इसके चीन अपने रक्षा बजट में वृद्धि कर रहा है।
चीन अपनी ताकत दिखाने में मशगूल है लेकिन अमेरिका के बहाने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चक्रव्यूह के दूसरे व्यूह पर आते हैं जिसमें चीन को कूटनीतिक रूप से घेरना है।
चीन ने ताइवान की आजादी का अतिक्रमण कर रखा है. लेकिन दुश्मन का दुश्मन दोस्त की कूटनीति का इस्तेमाल करते हुए भारत ने ताइवान का कूटनीतिक समर्थन कर दिया।
बुधवार को ताइवन की नई राष्ट्रपति साइ इंग वेन के शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी के दो सांसदों मीनाक्षी लेखी और राहुल कस्वां ने ऑनलाइन शिरकत की और उनको बधाई दी।
भारत जैसे देश के समर्थन से ताइवान को ताकत मिली है जो देर सबेर चीन के खिलाफ काम आ सकती है। इससे भी चीन तिलमिलाया हुआ है.
हॉन्गकॉन्ग में भी नाराजगी
चीन के खिलाफ हॉन्गकॉन्ग में भी भारी नाराजगी है. हॉन्गकॉन्ग में हो रहे हिंसक विरोध प्रदर्शन के बीच चीन ने उसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून संसद में पेश किया है. जबकि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत हॉन्गकॉन्ग के लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन करता है. वैसे प्रधानमंत्री मोदी बहुत पहले ही अपने लोकतांत्रिक फलसफे को दुनिया के सामने रख चुके हैं।
चीन को घेरने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के चक्रव्यूह का तीसरा व्यूह आर्थिक मोर्चा है। कोरोना ने दुनिया में चीन की साख को मिट्टी में मिला दिया है। वहां पर कोई भी कंपनी काम नहीं करना चाहती. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले से ही दुनिया से कह रहे हैं कि चीन को अलग-थलग कर देना है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना कहे ही बहुत कुछ इशारा तब कर दिया था जब आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया।