सितंबर में आयात शुल्क में 20% की बढ़ोतरी के बाद खाद्य तेल की कीमतों में वृद्धि के आसार

रिफाइंड व कच्चे पाम आयल पर सितंबर में आयात शुल्क में बढ़ोतरी के बाद खाद्य तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। दूसरी तरफ पाम आयल के इस्तेमाल से बनने वाले साबुन, शैंपू, कपड़े धोने वाले पाउडर चॉकलेट, बिस्कुट जैसे आइटम के भी नए साल में महंगे होने के आसार हैं।

HUL से लेकर गोदरेज जैसी FMCG कंपनियां तक साबुन के दाम पर नौ प्रतिशत तक बढ़ोतरी चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में ही कर चुकी है। एफएमसीजी से जुड़े कई आइटम के उत्पादन के लिए पाम आयल प्रमुख कच्चा माल है। सितंबर में आयात शुल्क में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बाद पाम आयल के दाम में पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत तक का इजाफा हो चुका है।

खाद्य तेल के लगातार बढ़ रहे दाम

घरेलू स्तर पर पाम आयल के दाम बढ़ने से खाद्य तेल की कीमतों में सितंबर के बाद लगातार बढ़ोतरी हो रही है। खाद्य तेल की घरेलू मांग की 55 प्रतिशत से अधिक पूर्ति आयात से की जाती है और इसमें पाम आयल की प्रमुख हिस्सेदारी होती है। पाम आयल के महंगा होने से अन्य सभी खाद्य तेलों पर इसका दबाव दिखा। गत वर्ष 14 सितंबर से पाम आयल के आयात शुल्क में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई।

खुदरा महंगाई दर के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल सितंबर में खाद्य तेल के खुदरा दाम में सितंबर, 2023 के मुकाबले 2.47 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही। पिछले साल अक्टूबर में यह बढ़ोतरी 9.51 प्रतिशत तो नवंबर में 13.28 प्रतिशत तक पहुंच गई। आयात शुल्क में बढ़ोतरी से पहले पिछले साल अगस्त में खाद्य तेल की खुदरा कीमतों में अगस्त, 2023 की तुलना में 0.86 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।

पिछले दो महीनों से खुदरा महंगाई दर की कुल बढ़ोतरी में सब्जी के दाम के बाद खाद्य तेल की प्रमुख भूमिका दिखने लगी है। हालांकि सरकार ने घरेलू खाद्य तेल उद्योग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से पाम आयल के आयात शुल्क में बढ़ोतरी की थी। ताकि खाद्य तेल के लिए आयात पर हमारी निर्भरता खत्म हो सके।

खाद्य तेल का दाम बढ़ने का दिख रहा असर

आयात शुल्क में बढ़ोतरी के दौरान सरकार ने तेल व्यापारियों से खाद्य तेल के दाम को नियंत्रित रखने की अपील भी की थी। लेकिन कई खाद्य तेल की खुदरा कीमतों में पिछले साल सितंबर से नवंबर के बीच ही 20 रुपए प्रति लीटर से अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी थी। विशेषज्ञों के मुताबिक एफएमसीजी वस्तुओं की कीमतें प्रभावित होने से उनकी बिक्री घट सकती है। खासकर ग्रामीण इलाके में खपत में कमी आ सकती है।

तभी एफएमसीजी कंपनियां अपने उत्पादों के साइज को छोटा कर रही हैं। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कई कंपनियां पाम आयल के इस्तेमाल से बनने वाले आइटम की कीमतों में बढ़ोतरी कर चुकी है। कंपनी का कहना है का लागत बढ़ने के दबाव जारी रहा तो इस प्रकार की बढ़ोतरी से फिर से की जा सकती है।

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