फंसे यात्रियों को निकालने के लिए दिन-रात जुटी Army-NDRF-SDRF, 1166 कर्मवीरों ने बचाई 12 हजार जान

केदारघाटी में फंसे तीर्थ यात्रियों की कुशलता के लिए एक तरफ उनके स्वजन और रिश्तेदार दुआ कर रहे थे तो दूसरी तरफ सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, डीडीआरएफ व पुलिस के जवान दिन-रात और भूख-प्यास का अंतर भुलाकर पूरे मनोयोग से उनको सकुशल निकालने में जुटे थे।

मंगलवार को आखिरकार इन कर्मवीरों की मेहनत रंग लाई और 12 हजार तीर्थ यात्रियों को सकुशल निकाल लिया गया। युद्धस्तर पर चले इस अभियान में 1,166 जवान और अधिकारियों ने योगदान दिया। बचाव अभियान में मौसम समेत तमाम चुनीतियां पेश आई, लेकिन न तो बचाव दल के कदम रुके, न तीर्थ यात्रियों का फैसला ही हिगा।

जब अभियान पूरा हुआ तो सभी के चेहरे पर विजय का भाव स्पष्ट देखा जा सकता था। प्राण रक्षा के इस महायज्ञ में जिला प्रशासन भी आहुति डालने में पीछे नहीं रहा।

केंद्र सरकार की और से भेजे गए चिनूक और एमआई-17 हेलीकाप्टर ने भी रेस्क्यू में अहम भूमिका निभाई। साथ में छह छोटे हेलीकाप्टर भी जुटे रहे। हालांकि, इस बीच चार लोग आपदा की भेंट भी चढ़ गए। इनके शव मलबे और पत्थरों के बीच दबे मिले।

केदारनाथ पैदल मार्ग कई स्थानों पर ध्वस्त

31 जुलाई की रात रुद्रप्रयाग में गौरीकुंड, भीमबली और लिनचोली के मध्य अतिवृष्टि के कारण केदारनाथ पैदल मार्ग कई स्थानों पर ध्वस्त हो गया था। मंदाकिनी नदी और आसपास के नालों में उफान से सोनप्रयाग तक हाईवे भी कई स्थानों पर टूट गया। उफान के साथ काफी मात्रा में मलबा सोनप्रयाग स्थित पार्किंग तक आ पहुंचा।

अफरा-तफरी में लोग जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों की तरफ भागे। केदारनाथ पैदल मार्ग पर भी काफी संख्या में यात्रियों ने ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जंगलों की तरफ रुख किया। उस दिन पैदल मार्ग के पड़ावों और धाम में 12 हजार से अधिक तीर्थयात्री मौजूद थे।

आपदा की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन हरकत में आ गया और सभी तीर्थ यात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर रोक दिया गया। जिला आपदा प्रबंधन समेत प्रशासन, पुलिस, एनडीआरएफ, डीडीआरएफ की टीम ने रात में ही रेस्क्यू शुरू कर दिया।

मंदाकिनी नदी के उफान को देखते हुए गौरीकुंड व सोनप्रयाग में नदी किनारे बने सभी भवन और पार्किंग खाली करवा दी गई। सभी को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया।

ताजा हो गई वर्ष 2013 में आई आपदा की याद

वर्ष 2013 की आपदा के 11 वर्ष बाद केदारघाटी में फिर से प्रकृति का तांडव देखने को मिला। दोनों आपदाओं में परिस्थितियां लगभग समान थीं। अंतर सिर्फ इतना था कि उस समय संसाधन और सूचनाएं समय पर नहीं मिलने के कारण रेस्क्यू शुरू करने में तीन से चार दिन का समय लग गया, जिससे हजारों जिंदगियां मौत के मुंह में समा गई।

इसके अतिरिक्त इस बार की आपदा में केदारपुरी पूरी तरह सुरक्षित रही और पैदल मार्ग व गौरीकुंड में ही इसका असर दिखा। आपदा के तत्काल बाद ही प्रशासन सजग हो गया था। रेस्क्यू टीम भी दिन-रात जुटी रही।

मदद को आगे आए लोग

केदानाथ धाम समेत पैदल मार्ग पर फसे हजारों यात्रियों को भोजन उपलब्ध कराना भी चुनौती था। ऐसे में स्थानीय लोग और संगठन आगे आए। प्रशासन ने हेलीकाप्टर से धाम व पैदल मार्ग पर भोजन भिजवाया तो स्थानीय निवासियों ने जगह-जगह भंडारा लगाकर यात्रियों की मदद की। धाम में मंदिर समिति और केदारसभा भी यात्रियों के लिए भोजन का प्रबंध करती रही।

ड्रोन ने बचाई छह जिंदगी

इस अभियान में ड्रोन ने भी देवदूत की भूमिका निभाई। पूरे अभियान के दौरान एसडीआरएफ की टीम ने छह भटके हुए यात्रियों को ड्रोन की मदद से खोजकर सकुशल निकाला। इसके अलावा हरियाणा निवासी एक युवक की मौत का पता भी ड्रोन से खोजबीन के दौरान ही चला।

आपदा के बाद पैदल मार्ग ध्वस्त होने से कई यात्री त्रियुगीनारायण के रास्ते लौटे। यह रास्ता घने जंगलों से होकर जाता है, इस कारण यात्री भटक जाते हैं। वर्ष 2013 की आपदा में सैकड़ों लोगों के कंकाल इस पैदल मार्ग पर मिले थे।

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