महारशिवरात्रि: बेहद रहस्यमयी हैं भारत के ये 5 शिव मंदिर, जानिए इसके बारे में…
कहा जाता है कि कण-कण में शंकर का वास होता है। महादेव को एक ऐसा भगवान माना जाता है जो जिंदा इंसानों के साथ-साथ भूत-प्रेतों द्वारा भी पूजे जाते हैं। इसलिए भारत के हर कोने में भगवान शिव के मंदिर आपको जरूर मिल जाएंगे जिनमें से कुछ मंदिर तो सदियों पुराने बताएं जाते हैं।
कुछ मंदिर ऐसे हैं, जहां शिवलिंग की स्थापना किसने की इसका कोई इतिहास ही पता नहीं चल पाता है और कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जिनका रहस्य न तो अध्यात्मिक तरीके से पता चल सका है और न ही कभी विज्ञान उनकी व्याख्या कर पाया है। 8 मार्च को महादेव के भक्त महाशिवरात्रि की पूजा करने वाले हैं।
कहा जाता है कि यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी। चलिए महाशिवरात्रि से पहले हम आपको भारत के उन 5 शिवमंदिरों के बारे में बताते हैं, जिन्हें बेहद रहस्यमयी माना जाता है।
1. गढ़मुक्तेश्वर शिव मंदिर – शिवलिंग पर उभरते हैं अंकुर
गढ़मुक्तेश्वर उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में स्थित एक छोटा सा शहर है। दिल्ली से यह 100 किमी और मेरठ से 42 किमी की दूरी पर गंगा नदी के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिवगणों को यहां पिशाच योनि से मुक्ति मिली थी, इसलिए गण-मुक्तेश्वर के नाम से जाना जाता था जो बाद में गढ़मुक्तेश्वर बन गया।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि साल के एक खास समय यहां शिवलिंग पर अंकुर उभरता है। अंकुर कहां से आता है और इसे शिवलिंग से पोषण कैसे मिलता है, इसके बारे में आज तक कोई कुछ नहीं बता सका है। इतना ही नहीं, इस मंदिर की सीढ़ियों पर पत्थर फेंकने से पानी में पत्थर मारने जैसी आवाजें आती हैं। इसका भी वैज्ञानिक कारण आज तक कोई नहीं जान सका है।
2. अमरनाथ की गुफा – बर्फ से खुब-ब-खुद बनता शिवलिंग
भगवान शिव से संबंधित सबसे रहस्यमयी जगह अमरनाथ की गुफा है। यहां महादेव बाबा बर्फानी के रूप में विराजमान हैं। सबसे हैरानी की बात है कि साल में निश्चित समय पर ही इस गुफा में भगवान शिव की कई फीट ऊंची लिंगरूप प्रतिमा खुद से तैयार हो जाती है। जब भी पहाड़ी स्थानों पर बर्फबारी होती है, तो बर्फ के एक नहीं बल्कि कई टिले बनते हैं। लेकिन अमरनाथ की गुफा में महादेव का एक ही विशालाकार टिला शिवलिंग के रूप में बनता है।
बर्फ से बना यह शिवलिंग पूरी तरह से ठोस होता है, जबकि बर्फबारी के दौरान गिरी बर्फ बेहद भुरभुरी और नर्म होती है। इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं में कहा जाता है कि इस गुफा में महादेव ने माता पार्वती को अमरता का रहस्य बताया था, जिसे उस समय वहां मौजूद कबूतर की एक जोड़ी ने भी सुन लिया था और वह आज भी इस गुफा में मौजूद है। आश्चर्य की बात है कि इतनी ठंड में जहां तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे रहता है, वहां पिछले साल भी कबूतर की एक जोड़ी को देखा गया था और यह व्यवहार किसी भी आम कबूतर के व्यवहार से ठीक विपरित है।
3. बृहदेश्वर मंदिर, तमिलनाडु – बिना नींव का मंदिर
तमिलनाडु के तंजौर में स्थित बृहदेश्वर महादेव का मंदिर 11वीं शताब्दी में बना मंदिर है। आश्चचर्यजनक रूप से हजारों साल पुराना 13 मंजिला यह मंदिर बिना किसी नींव के आज भी तनकर सीधा खड़ा है। बताया जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में ग्रेनाइट का इस्तेमाल हुआ था। मंदिर के शिखर पर एक 80 किलो वजन का पत्थर रखा हुआ है, जिसपर एक स्वर्ण कलश टिका है। लेकिन हजारों साल पहले जब न तो आधुनिक मशीनें हुआ करती थी और न ही क्रेन, तब इतना भारी पत्थर मंदिर के गुंबद तक कैसे पहुंचा? इसका रहस्य आज तक कोई नहीं जान सका है।
4. कैलाशनाथ मंदिर, एलोरा की गुफाएं – एलियन ने किया था निर्माण
महाराष्ट्र की एलोरा और अजंता की गुफाओं के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा। एलोरा गुफाओं के समूह में मौजूद कैलाशनाथ मंदिर। इस मंदिर का इतिहास भी अजंता-एलोरा की गुफाओं के जितना ही पुराना है। इस मंदिर का निर्माण जिस तरीके से हुआ है, वो अपने आप में कई तरह के सवाल उठाती है, जिनका जवाब आज तक नहीं मिल सका है। दावा तो यह भी किया जाता है कि इसका निर्माण एलियन ने किया था।
हम सभी जानते हैं कि कैलाशनाथ मंदिर को एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चट्टानों को ऊपर से नीचे की ओर तराशकर किया गया था। दावा किया जाता है कि इस दौरान लगभग 2 लाख टन चट्टान काटकर बाहर निकाली गयी होगी। लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस इलाके में दूर-दूर तक इन चट्टानों का मलबा कहीं नहीं मिला। तो भी चट्टानों का मलबा आखिर गया कहां?
5. टिटलागढ़ मंदिर, ओडिशा – तापमान में जमीन-आसमान का फर्क
ओडिशा के टिटलागढ़ में स्थित शिव मंदिर ऐसा है, जहां मंदिर परिसर के अंदर और बाहर में तापमान में जमीन-आसमान का फर्क दिखाई साफ-साफ पता चलता है। यह मंदिर कुम्हड़ा पहाड़ की पथरिली चट्टानों पर बना हुआ है। गर्मी के मौसम में जहां पथरिली जमीन पर पैर रखकर 2 पल भी खड़े होना दुश्वार हो जाता है, वहीं मंदिर परिसर के अंदर कदम रखते ही वह पूरी तरह से ठंडी मिलती है।
एक ही समय में मंदिर परिसर के बाहर और अंदर तापमान में इतना फर्क क्यों होता है, इसका रहस्य न तो विज्ञान सुलझा सका है और न ही इसका अध्यात्मिक कोई कारण पता चल पाया है। भक्त इसे महादेव का चमत्कार ही मानते हैं।