उत्तराखंड: दुकान पर 13-14 साल के बच्चों से कराया काम, कोर्ट ने इतने हजार का लगाया जुर्माना

देहरादून में बाल श्रम कराने के एक मामले में पहली बार सजा हुई है। अपर सिविल जज (एसीजेएम पंचम) की अदालत ने आरोपी को दोषी पाते हुए 10 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है। जुर्माना नहीं देने पर दोषी को एक माह साधारण कारावास में रहना पड़ेगा। बाल श्रम का यह मामला देहरादून में वर्ष 2020 में दर्ज हुआ था। 28 जुलाई 2020 को नोबेल पुरस्कार प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी की संस्था बचपन बचाओ आंदोलन के उत्तराखंड के स्वयंसेवियों ने दून के महादेव पूजा स्टोर धर्मपुर से दो बच्चों को रेस्क्यू किया था। 

राज्य बनाम राजेश्वर कुमार मामले में हाल ही में यह फैसला आया है। इसमें एसीजेएम/पंचम अपर सिविल जज-सीडी ममता पंत की अदालत में आरोपी ने अपना जुर्म स्वीकार किया। जुर्म स्वीकार करने के आधार पर अदालत ने राजेश्वर कुमार को धारा 3/14 बाल श्रम अधिनियम के तहत दोषी करार दिया। संस्था का कहना था कि अभियुक्त के यहां 13 व 14 वर्ष के दो बच्चों से बाल श्रम कराया जा रहा था, जो बाल श्रम अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है। 

अभियुक्त का यह कहना कि, वह गरीब व्यक्ति है और परिवार का मुखिया है। समस्त परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी उसी पर है। इस मुकदमे में वह आगे लड़ना नहीं चाहता और जुर्म स्वीकारोक्ति के आधार पर मुकदमे का निस्तारण चाहता है। अभियुक्त ने न्यूनतम दंड की प्रार्थना भी की थी। सभी तथ्यों व परिस्थिति के मद्देनजर अभियुक्त की धारा 3/14 बाल श्रम अधिनियम के तहत अपराध में दस हजार रुपये अर्थदंड देना तय किया गया। जुर्माना न देने पर एक माह का अतिरिक्त साधारण कारावास दिया गया। अदालत ने कहा कि यदि अभियुक्त अर्थ दंड अदा कर देता है तो उसे अविलंब रिहा कर दिया जाए।

112 नंबर पर दर्ज कराएं बाल श्रम की शिकायत

प्रदेश में बाल श्रम की शिकायतों के लिए चाइल्ड हेल्प लाइन का संचालन महिला बाल विकास विभाग की ओर से किया जा रहा है। हेल्पलाइन नम्बर 112 पर कोई भी जिम्मेदार नागरिक बालश्रम से संबंधित शिकायत दर्ज करा सकता है।

अब तक 164 बच्चे किए गए रेस्क्यू

बचपन बचाओ आंदोलन के राज्य समन्वयक सुरेश उनियाल ने बताया कि उनकी संस्था बाल श्रम उन्मूलन के खिलाफ 2017 से राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है। अब तक प्रदेश में 164 बच्चे रेस्क्यू किए जा चुके हैं। बाल श्रम के 40 केस 2020 से खुद संस्था ने ही दर्ज कराए हैं। बाकी मामले बाल श्रम के लिए गठित जिला टास्क फोर्स देख रही है।

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