बॉम्बे HC ने बच्चे की कस्टडी मामले में पिता के पक्ष में सुनाया फैसला, कही यह बात

नागपुर, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने अहम टिप्पणी करते हुए एक पिता के खिलाफ अपने ही बेटे के अपहरण के आरोप में दर्ज मामले को खारिज कर दिया। दरअसल, एक व्यक्ति जिसने अपने नाबालिग बच्चे को अपनी अलग हुई पत्नी की पास से हटा दिया है, उस पर 29 मार्च को उस पर अपने बेटे के अपहरण का आरोप लगाया गया था, जो कि उसकी पत्नी ने ही लगाया था।

कोर्ट ने मामला किया रद्द

अदालत ने आशीष ए मुले के खिलाफ दायर प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को रद्द कर दिया है। जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) के तहत दर्ज मामले को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है और इस तरह के अभियोजन को जारी रखना कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने जैसा होगा।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 6 अक्टूबर को फैसले में कहा कि किसी भी जैविक पिता पर अपने ही बच्चे के अपहरण का मामला सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह बच्चे को उसकी पत्नी से जबरन लाया है।

पिता भी होता है वैध संरक्षक

न्यायाधीशों ने इस बात पर जोर दिया कि मां के साथ ही पिता भी नाबालिग बच्चे का वैध अभिभावक है। ऐसे में अपहरण का आरोप लागू नहीं होता, क्योंकि बच्चे को एक वैध संरक्षकता (मां) से दूसरे वैध संरक्षकता (पिता) के पास लाया गया था।

हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम का जिक्र

अदालत ने हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 का भी जिक्र किया, जो एक बच्चे के प्राकृतिक अभिभावकों को परिभाषित करता है। इस कानून के तहत, एक हिंदू नाबालिग के लिए, सर्वप्रथम पिता प्राकृतिक अभिभावक का पद रखता है, उसके बाद मां आती है। जिससे यह स्पष्ट था कि पिता नाबालिग बच्चे का स्वाभाविक अभिभावक था और मां को अदालत के आदेश के माध्यम से बच्चे की कानूनी हिरासत नहीं मिली थी।

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