चंद्रयान-3 के बाद जापान ने भी लॉन्च किया मून मिशन, इतने महीने बाद चांद पर करेगा लैंडिंग

भारत के सफल चंद्रयान-3 मिशन के बाद जापान ने भी अपना मून मिशन लॉन्च कर दिया है। तांगेशिमा स्पेस सेंटर के योशीनोबू लॉन्च कॉम्प्लेस से रॉकेट लॉन्चि किया गया जिसमें एक छोटे मून लैंडर के साथ ही एक्स-रे टेलिस्कोप है जिसकी मदद से ब्रह्मांड के बनने की प्रक्रिया का पता लगाने की कोशिश की जाएगी। जापान स्पेस सेंटर ने अपने H-IIA रॉकेट से लॉन्चिंग की है। लॉन्चिंग के 13 मिनट बाद इस रॉकेट ने पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक एक सैटलाइट स्थापित कर दिया गया। 

कैसे बना ब्रह्मांड? 

जापान के इस सैटलाइट में एक्स रे इमेजिंग ऐंड स्पेक्ट्रोस्कोपी मिशन केपेलोड्स लगे हैं। इसके जरिए गैलेक्सी का अध्ययन किया जाएगा। पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि गैलेक्सी के बीच में क्या है और इसकी  स्पीड कितनी है। जापानी स्पेस एजेंसी JAXA का कहना है कि इस मिशन के जरिए ब्रह्मांड के बनने की प्रक्रिया का पता लगाने में मदद मिलेगी। इसके जरिए अंतरिक्ष के पिंडों के चमक, वेवलेंथ, तापमान के बारे में भी पता लगाया जाएगा। 

 जापान का SLIM मिशन

जापान ने जो मून लैंडर लॉन्च किया है वह बेहद छोटे आकार का है। इसे स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून (SLIM) नाम दिया गया है। जापान चाहता है कि वह अपनी क्षमता का प्रदर्शन करके कि उसके लिए चंद्रमा पर सटीक जानकारी इकट्ठा करना आसान है। स्लिम एक हल्का रोबोटिक लैंडर है। इस मिशन में 831 करोड़ से ज्यादा रुपये खर्च हुए हैं। पहले 26 और फिर 28 अगस्त को मिशन लॉन्च करने का प्लान बनाया गया था लेकिन खराब मौसम की वजह से इसे टाल दिया गया। 

6 महीने में चांद पर पहुंचेगा स्लिम

भारत ने चंद्रयान- 3 मिशन 14 अगस्त को लॉन्च किया था और इसका लैंडर विक्रम 23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड कर गया। यानी इसने 9 दिन का ही समय लिया। वहीं स्लिम 6 महीने की यात्रा के बाद चांद पर पहुंचेगा। जापान का कहना है कि ईंधन को ज्यादा से ज्यादा बचाकर यह मिशन कामयाब किया जाएगा। जापान चाहता है कि यह मिशन वहीं लैंड हो जहां के बारे में पहले से निर्धारित कर दिया गया है। इसकी जगह में परिवर्तन ना करना पड़े। 

चांद के ‘समंदर’ में उतरेगा जापान का लैंडर

जापान का लैंडर चंद्रमा के उस हिस्से में उतरेगा जो हमें पृथ्वी से दिखाई देता है। इसके अलावा इसे चांद के दिखाई देने वाले सबसे बड़े धब्बे के पास उतारा जाएगा। यहां पर सबसे ज्यादा अंधेरा रहता है। इस मिशन के जरिए ओलिवीन पत्थरों की जांच की जाएगी। जापान के एक सैटलाइट चांद के चारों ओर चक्कर लगाएगा। यह चांद पर बहने वाली प्राज्मा हवाओं के बारे में पता लगाएगा।

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