उत्तराखंड में हिमस्खलन के खतरे को भांपने का बना यह जबरदस्त योजना
हिमस्खलन (एवलांच) के खतरे को अब पहले ही भांपा जा सकेगा। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले हिमस्खलन की भविष्यवाणी के लिए वैज्ञानिकों ने स्विस आल्पस के डेटासेट की मदद से न्यूरल नेटवर्क मॉडल तैयार किया है। शोधकर्ताओं ने मॉडल को स्विस ऑल्पस के उच्च गुणवत्ता के सब-डेटासेट का उपयोग कर मौसम विश्लेषण के साथ आजमाया है।
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार के मार्गदर्शन में उनकी टीम ने ये मॉडल बनाया है। बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस पिलानी हैदराबाद कैंपस की विपाशना शर्मा, दून के डीआईटी यूनिवर्सिटी की सीएसई हेड प्रो.रमा सुशील का यह शोध अंतरराष्ट्रीय पत्रिका नेचुरल हैजर्ड्स एंड अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित हुआ है।
दुनियाभर में ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में हिमस्खलन से मानव जीवन और संपत्ति को खतरा होता है। भारत में जहां सीमांत क्षेत्रों में सेना की चौकियों पर भारी बर्फबारी और हिमस्खलन से हादसों का खतरा रहता है, ऐसे स्थानों के लिए ये शोध उपयोगी है। पिछले डेटा रिकॉर्ड के आधार पर इस मॉडल के प्रयोग से एवलांच के खतरे के स्तर का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। शोध में 79.75 की प्रशिक्षण सटीकता और 76.54 की सत्यापन सटीकता हासिल हुई।
स्विट्जरलैंड से मिला बीस साल का डेटा
मशीन लर्निंग मॉडल विकसित करने में प्रमुख बाधा विश्वसनीय डेटा की कमी है। हिमस्खलन अनुसंधान संस्थान स्विट्जरलैंड के पास अल्पाइन क्षेत्र स्विस आल्पस का 20 साल का डेटा उपलब्ध था। शोध के लिए यही सत्यापित डेटा लिया गया। इसे 1997 से 2017 के बीच 182 स्नो स्टेशनों से एकत्र किया गया। इस डेटा का उपयोग वहां हिमस्खलन चेतावनी सेवा के लिए होता है।
उत्तराखंड के डेटा का होगा अध्ययन
डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि हिमालय क्षेत्र के एवलांच डेटा के लिए वैज्ञानिक संस्थानों से संपर्क किया गया है। ये मॉडल यहां भी लागू कर परिणाम मिल सकते हैं। ये शोध ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में मानव जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के लिए अहम है।