जानें क्यों भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन प्राणो का किया त्याग…

 मकर संक्रांति हिन्दुओं का महत्वपूर्ण पर्व होता है. इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी 2023 को देशभर में मनाया जाएगा. मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से देश के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है.

कर्नाटक में इसे संक्रांति, तमिलनाडु और केरल में पोंगल, पंजाब और हरियाणा में माघी, गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण, उत्तराखंड में उत्तरायणी, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी आदि जैसे नामों से भी जाना जाता है.

शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन को बेहद ही शुभ माना गया है. वहीं ज्योतिष में ‘संक्रांति’ का अर्थ सूर्य या फिर किसी ग्रह के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश से बताया गया है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तर दिशा की ओर गमन करते हुए धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं.

इसलिए इसे उत्तरायण भी कहा जाता है. उत्तरायण के दिन को बहुत ही शुभ माना गया है. यह दिन दान-दक्षिणा और पूजा-पाठ के लिए ही अत्यंत ही शुभ होता है. मान्यता है कि इस दिन प्राण त्यागने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण कि, भीष्म पितामह अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे.

क्यों उत्तरायण पर प्राण त्यागना चाहते थे भीष्म पितामह

महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुए थे. लेकिन जब वे बाण से घायल हुए, तब सूर्य दक्षिणायन में थे. शास्त्रों के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है. यही कारण था कि भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया.

दरअसल भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, वे जब चाहे अपने प्राण त्याग सकते थे. भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से जख्मी हो गए थे. बाणों से बिंधे होने के बाद भी उन्होंने अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा की. छह माह वे शरशैय्या पर थे और अपने जीवन हर एक श्वास को तोलते हुए सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे.

इस दौरान उन्होंने पांचों पांडव को देखते हुए जीवन का आखिरी उपदेश भी दिया और संसार के कल्याण के लिए वरदान भी मांगा. इसके बाद जब सूर्य की राशि में परिवर्तन हुआ (सूर्य का धनु राशि से मकर राशि परिवर्तन) तो आकाश की ओर एकटक देखते हुए भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे और उनके प्राण ने देवलोक की राह ली.

यही कारण है कि महाभारत के अंतिम अध्याय का यह प्रसंग, जिसमें भीष्म पितामह के प्राण त्यागने का उल्लेख किया गया है, यह भारतीय प्राचीन परंपरा में शुभता का प्रतीक बन गया है और इस कारण मकर संक्रांति के दिन यानी उत्तरायण के दिन को नवचेतन के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है.  

मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक तथ्य

  • महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को चुना था.
    मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में मिली थीं और महाराज भगीरथ के पूर्वजों को इस तरह मोक्ष की प्राप्ति हुई थी
  • मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में हर साल मेला लगता है.
  • मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी भूलाकर उनके घर गए थे.
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर पवित्र नदी में स्नान, दान और पूजा आदि करने से पुण्य प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है.
  • मकर संक्रांति के दिन से मलमास भी खत्म हो जाते हैं और शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं.
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