500 करोड़ खर्च कर लोगों की ‘जाति’ पूछेगी बिहार सरकार, जानिए क्या हैं योजना…

पटना: बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) की गठबंधन सरकार बनते ही सीएम नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराने पर सहमति दे दी थी। अब आज शनिवार (7 जनवरी) से बिहार में इसको लेकर काम भी शुरू हो चुका है। बता दें कि, RJD विपक्ष में रहने के समय से ही जातिगत जनगणना कराए जाने की माँग करती आ रही थी।

नीतीश कुमार की विवादास्पद जाति आधारित जनगणना पर 500 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। राज्य सरकार दो चरणों में इस जनगणना को पूरा करेगी। प्रथम चरण में 7 जनवरी से 21 जनवरी तक किया जाएगा। इस दौरान सूबे के सभी घरों की भी गणना की जाएगी। इसका दूसरा चरण मार्च में आरंभ किया जाएगा। इस दौरान सभी जातियों, उप-जातियों और धर्मों के लोगों से जुड़े आँकड़ें जुटाए जाएँगे। इस दौरान गणना करने वाले कर्मचारी उन सभी लोगों की आर्थिक स्थिति की जानकारी भी रिकॉर्ड में दर्ज करेंगे।

पंचायत से जिला स्तर तक के इस 8 स्तरीय सर्वेक्षण में एक मोबाइल एप्लिकेशन के जरिए डेटा डिजिटल रूप से जुटाया जाएगा। इस ऐप में स्थान, जाति, परिवार में लोगों की तादाद, उनके पेशे और सालाना आय के बारे में सवाल होंगे। जनगणना करने वाले लोगों में शिक्षक, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, मनरेगा (MNREGA) या जीविका कार्यकर्ता शामिल हैं। इन लोगों को जनगणना से जुड़े कार्यों को पूरा करने के लिए नितीश सरकार ने 15 दिसंबर 2022 से प्रशिक्षण देने के लिए प्रबंध किया था।

बता दें कि आजादी के बाद से अब तक देश में कुल 7 बार जनगणना हो चुकी है। इन सबमें सिर्फ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आँकड़े ही प्रकाशित किए गए थे। हालाँकि, प्रति दस वर्षों में होने वाली इस जनगणना में प्रत्येक जाति और धर्म के आंकड़े जुटाए जाते रहे हैं, लेकिन जारी नहीं किए जाते। ऐसे में बिहार सरकार खासकर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के आंकड़े जानना चाहती है। 

नितीश-तेजस्वी को जातिगत जनगणना से क्या लाभ:-

दरअसल, बिहार सरकार का कहना है कि वह इन आँकड़ों का उपयोग जनोपयोगी नीतियों को बनाने में करेगी। लेकिन, राजद और जेडीयू कि राजनीति पर गौर किया जाए तो, दोनों ही दलों की सियासत OBC वोट बैंक पर टिकी हुई है। जहाँ लालू यादव की पार्टी के लिए अहीर प्रमुख वोट बैंक हैं, वहीं नितीश कुमार को कुर्मी वोटर्स का सपोर्ट है। ऐसे में यदि OBC के सही आँकड़े इनके सामने आ जाते हैं, तो इन दोनों दलों को अपनी राजनीतिक गोटियाँ सेट करने में सहायता जरूर मिल जाएगी। वहीं, बिहार सरकार की इस नीति में एक खामी ये भी है कि, इसमें सरकार ने अवैध घुसपैठियों, बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं को पहचानने के लिए कोई ठोस आधार नहीं रखा है। शायद ये भी वोटबैंक को देखते हुए ही किया गया हो। क्योंकि, RJD और JDU दोनों को बड़ी मात्रा में मुस्लिम वोट भी मिलते हैं, ऐसे में रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों को अलग कर मुस्लिमों को नाराज़ करना कोई नहीं चाहेगा।  

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