Buddha Stupa: बौद्ध स्तूपों की बनावट में छिपा है गहरा राज, जानें स्तूप के पांच प्रकार
Buddha Stupa: हिंदू धर्म में जो स्थान मंदिर व तीर्थ स्थलों का है, बौद्ध धर्म में वही स्तूपों का है. जिन्हें शिलालेखों में थुब कहा गया है. ये बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध की अस्थियां, अवशेषों व अन्य पवित्र वस्तुओं को यादगार के रूप में सुरक्षित रखने के लिए बनाये गए हैं, जिनके आकार और प्रकार में भी रहस्य छिपा है. आज हम आपको उसी के बारे में बताने जा रहे हैं.
बौद्ध स्तूप के प्रतीक
इतिहासकार महावीर पुरोहित के अनुसार, बौद्ध स्तूप गुंबद या अद्र्धाकार टीले के आकार में दिखाई देता है. जिसके मूल ढांचे में चौकोर आधारशिला भूमि व चार आर्य सत्य का प्रतीक हैं. ऊपर छतरी वायु व बुराई से सुरक्षा का प्रतीक है. दोनों को मिलाने वाली सीढिय़ां अग्नि का प्रतीक मानी जाती हैं. छतरी के ऊपर मुकुट के रूप में आकाशीय खगोल बना हुआ हुआ है.
स्तूप में सबसे ऊपर अग्नि की लौ दर्शाता शिखर सर्वोच्च प्रबोधन का प्रतीक है. सूर्य व चंद्रमा सत्य व अन्योन्याश्रयी सत्य के बीच के मेल का सूचक हैं. तेरह सीढिय़ों में से पहली दस सीढिय़ाँ ‘दशा-भूमि’ व अंतिम तीन सीढिय़ां ‘अवेणिका-समृत्युपष्थाना’ को दर्शाती हैं. स्तूप का गुंबज ‘धातु-गर्भ’ और आधार पाताल का प्रतीक है. स्तूपों में बुद्ध पद गौतम बुद्ध के पदचिह्नों को कहते हैं. स्तूपों में एक या एक से अधिक प्रदक्षिणा यानी परिक्रम मार्ग होते हैं.
बौद्ध स्तूप के पांच प्रकार
बौद्ध धर्म में पांच तरह के स्तूपों का निर्माण हुआ है. जो शारीरिक, परिभोगिका, उद्देशिका, प्रतीकात्मक और मनौती स्तूप हैं. इनमें शारीरिक स्तूप में गौतम बुद्ध और अन्य आध्यात्मिक विभूतियों के अवशेषों को सुरक्षित रखा गया है. जैसे सांची स्तूप. परिभोगिका स्तूप, बुद्ध व उनके अनुयायियों की वस्तुओं पर बनाए गए हैं. उद्देशिका (स्मारक) स्तूप गौतम बुद्ध के जीवन काल की घटनाओं से जुड़ी जगहों पर बनाये गए हैं. जबकि प्रतीकात्मक स्तूप बौद्ध धर्मशास्त्र के विभिन्न पहलुओं के प्रतीक व मनौती स्तूप मूल स्तूपों का प्रतिरूप के रूप में निर्मित हैं.
बौद्ध धर्म के प्रमुख स्तूप
बौद्ध धर्म के प्रमुख स्तूपों में सांची, सारनाथ, भरहुत, बंगाल, पिपरहवा, गांधार, अमरावती व नागार्जुन कोण्डा के स्तूप आदि माने जाते हैं.